पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३७९

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शिवसिंहसरोज

शिवसिंहसरोज सोवत जाने के देवर संपुहि मोद भयो महिली के दियो है। भूपन बारे उतारि संवे ने माँ को दीनो बुझाइ दियो है ! सोऊ उतारि विचार के मैलो सो चीर सरीर सुधार लियो है । थों अधराति अमावस की वनि कुंजन को अभिसार किया है ॥ २ ॥ पियं प्यारे के प्यार विचारविचारि प्रचार करें चतुराइन के 7 मन में प्रति सोच सकोच - करें सोच सकोच लुगाइन के । ! हरिदास महार देन न देत महा उर नेह सुभाइन के । परि लेत है. बेरहि बेर ठकुराइन पाँइन नाइन के ॥ ३ ॥ लेहै बाँधि जूरत तऊ पनि सर्दी न पूरी निज वारन गरूरो कुण्डल को रूप सैहै री हरिदास ऐस ही जो वदन ललौटी तौ या मोतिन की काँचुरीसी सोभा सरसे है री ॥ जाइ माति गोकुल विलोकि तोईि दूरि ही ते कुंजन ने बाँसुरी बजाइ आइ है री। काली जानि चाली रसयाली पहुऐ है कहूँ व्यालीसम बेनी बनमाली लखि पैहै री ॥ ४ ॥ ८०२. हरिदास कधिपदानिघासी, नोने कवि के पिता (२ ) कमल कला के कंज कानन भिरत चंन्दु कमल कला के कंज कानल भिरत हैं । । कहै हरिदास वैन मधुर मुलाम ग्राम मधुर पुलाम ग्राम मारभ थिरत हैं ॥ कन्दर दरप विभूषनघिरत हम कदरए दप विभूपन घिरत हैं ॥ १ ॥ * कोमल कंजन की कलिका अलि काहे न चित्त तह तू रमायो। मंजरी मंजू रसलन की तिनको रस क्यों नहीं तो मन भायो ! कुंजन और अनेक लता हरिदासजू आायो वसन्त सुहायो । लड़ेि गुलावन को बन कटसेरुव पै केहि कारन आायो ॥ २॥ १ स्त्री ।२ नेत्र । ३ आम । वे एक पेड़, जिसका फूल परिीला होता है, और जिसमें कॉटे बहुत होते हैं, पर गंध कम ।

  • मूल में तीन ही चर ण थे, चौथे का पता नहीं है । सस्पाद ऊ,

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