पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३७०
शिवसिंहसरोज

शिवसिंसन नेति नेति वचनामृत सुनि सुनिललितादिक देखत हुरि चोरी । सितहरिस करत करधूनन प्रनय को माला बलि तोरी\ १ ॥ ८२१. हरिभानु कवि ( नरेंद्रभूषण ) कैधों के सिंगार बीच रौद्र रख रेख कैथों सोहत कसौटी कैधों कनक सराफ काम : कैधों तम ऊपर रजोगुन की लीक मृदु कैधों घन दामिनी लसत महा अभिराम ॥ कैधों स्याम भामिनी को यूरिख के विधाता कीनी हाइवे को नीकी घर रेस की डोरी दास। कैधों प्यारे प्रीतम के बस करिये को भाजू संदुर सुवेस माँग सुन्दर द्वारी वाम ॥ .१ ॥ संग दल भारो घोर शुरत नगारो कोई और न विचारो कोई तोरावर राघों । ऐलत परी अधिकात फरिया गैल तल खेल भेल प्रति ड मुलुक भ१यों बाबरा ॥ रन की बाला यों कहत निज घालम सर्षों वैरिन रच्यों है कंत कीनो कालु राघगे । सूची मति जामो आन कघिन बखानो भानुसिंह रनजोर सुनियत रन रावत ॥ २ ॥ ८२२. हुसेन कवि कज्ज्स सी निति सज्जुल से घन तडजल में चली संग न सथी। कुंज गुंध्यारी सिधा हुसेन विहारी मै जाति ती शुद्धि में न थ्थी ॥ किंचक दस्त सर्ष लग्यो पग स५ घसीटत एक पथे। जोर जंजीर जरो जक मनो ष्टि चलो मनमथ्थ को इध्थी ॥१ ॥ ८२३. हेमगोपाल कवि चंद तेस्याम कलंक ते उज्ज्वल है निसि चंद पै बंद न होई। बर्षि सुधा सबको सुख देत है जो मेहंस के मस्तक सोई ॥ १ नहींसहीं। "२९। छिपकर - ३। जलभरे। ४ । एक पैर थे ।