शिवलिंद सरोज ३७१ है विपरीत नहीं विपरीत ङ बेद पुरान कहैं सब कोई । मास के मध्य में हेमगोपाल वर्दों नर ताहि कहै कवि जोई ॥ १ ॥ । ८२४हेमनाथ कवि। जोर परे जोर जात भार पर भूमि जात भूमि जात जोघन अनंग रंग रस है । कर हेमनार्थ सुख सस्पति विपति जात जात दुख दारिद समूह सरबस है ॥ गढ़ गिरि जात गरुनाई औौ गय जात जात सुखसाहिबी समूह सष रस है । वाग कटि जात कुॉ ताल पष्टि जनत नदी नद घटि जात से न जात जग जस है। ॥ १ ॥ एक रसना में जाम जपत हो रामै ता मैं तेरो जस्स जोरि कामैं कहूँ धिसारि हरें । कहै हेमनाथ नरनाथन के आगे जायं तेरो जस जाहिर जवाहिर पसारि ही कौन देहै मेल मोहिं केहरी कल्यान सादि नाम सो नगीना कहि का कान ढारि हौं । रैंपिनिं 8 नाइ गुन गारुड़ीतिहा पदि तुम उर विघेर सबें बाहर के डारि हाँ।२॥ २४. हेम कवि करि के सिंगार अली चली पिथ पास तेरे रूप को दिमाग काम कैसे धीर धरि है । एरी मृगनैनी चाल चलत मरालैन की तेरी छवि देखे ते पिया न ध्यान टरि है ॥ ता ते तू वैठि रूस- आगरी मन्दिर में तेरे रूप देखे से अरफेरथ आरि है । कहै कवि हेम हियो ढाँपि लेहु अंचल ते पेटी ना दिखाउ को पेट मारि मरि है ॥ १ ॥ ८२६: हरिश्चंद्र बाबू बनारसी श्रीगिरिधरदास के पुत्र (उंदरीतिलक ) तब तौ वह भ्राँति भरोसो दिथो अवहीं हम लाय भिलाती हैं। हरिचंद भरोसे रहीं उनके साखियाँ से हमारी कहती हैं । व तेजदगा दे बिदा है गंई हैलटे मिलि के समझती ।
- यह कावित्त कूट है । १ जभि ।२ वाँची । ३हंस !४ सूर्य का रथ।