पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३९१

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शिवसिंहसरोज
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अकाल दिशा काम को । कैधौ जलधर एक धारा सों विराजत है कैधौ कवरी की परछाई झाई बाप को ॥ कैधौ गजलुण्ड नाभि- कुण्ड जज पान करै कैधों कामदेख लिख राखयो रतिनाम को । कैधों कुच भूप सीमा बाँटि लोनी आयै-आघ कैधौ है पिपीलिका की पाँति चली धाम को 7 १ ॥

८३४. हिसाचरलराम शाकद्वीपीभटौलीचाले

एक संभे मधु खेलहेिं गेंद गिरो जमुनाजल मध्थति माही। कूदि परयो हरि ताही के हेत गयो घसी पैठी पतालहि जाहीं ॥ बाल सखा बहु रोदन के हिय सोच बड़ो गये मैहरि पाही । कृष्ण तिहारो डुबो जमुना बिच ढूंढी थके हंम पांवत नाहीं ।।१ ॥

३५. हीरालाल कवि

हिमकर बैरी और हाथी श्रौ हरिन हरि खंजरीट वैरी तेरो मीन श्रौ मराल री । कदली कपूर फरि कोकिल की चैरिनि त् दाड़िय बधूक विश्व वैरी हैं संवार री ॥ चव्ा सस्पा चंचरोक रात कीर कंबू हीरालाल जमुना औ चौतिं बैरी कुन्दन श्रौ ख्याल री। एत्ते सर्वे वैरी तेरे एक हिदू स्पाम तेरे स्याम हू ते बैर तेरो है है। कौन हाल री ॥ १ ॥

८३६ हुलास कवि

व्याख्यो न काहेि विद्युबे को वेदन कौन सुभाउ में मंगल पेख्यो । कौन तिया को सिंगारं न भावत कौन सी नि जो चंद न लेख्यो काहे हुलास संजोगिनी के जिप साँची को यह बात विसेख्यो । बाँझ को पूत बिना श्रॅखियान कुहुनिसी में ससि पूरन देंखयो १

८३७. हरिदास म्दावन वाली

जयति राधिकारमरग वरचरणपरिचणरतिघल्ल भांधीशस्तविटले । १ चोटी। २ हद । ३ चींटी। ४ चंद्रमा -५ . अमावस की रात ।