सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/४१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३९६
शिवसिंहसरोज


हमारे काव्य में न मिले । तब कृष्णदासजी ने चार पद सुनाये | उन सब पदों में सूरजी ने अपने पदों की चोरी साबित की, तब कृष्णदासजी ने कहा- कल हम अनूठे पद सुनावेंगे ऐसा कह सारी रात इसी सोच में नहीं सोये । प्रातःकाल अपने सिरहाने यह पद लिखा हुआ देख सूरजी के आगे पढ़ा- “यावत बने कान्ह गोपवालक सँग छुरित अलकावली ।" सूरजी जान गये कि यह करतूत किसी और ही कौतुकी की है । चोले- अपने बाबा की सहायता की है। इनकी गिनती में है। अर्थात् न श्राट बड़े कवि हुए हैं । तुलसीशव्दार्थकाश ग्रंथ में गोपाल सिंह ने छाप का ब्योरा इस भाँति लिखा है कि सूरदास, कृष्णदास, परमानन्द, कुम्भनदास, ये चारों वल्लभाचार्य के शिष्य, और चतुर्भुज, बीतस्वामी, नन्ददास, गोविन्ददास, ये चारों विलनाथ वलभाचार्य के पुत्र के शिष्य प नाम विख्यात हैं । कृष्णदासजी का बनाया हुआ प्रेमरसरास ग्रंथ बहुत सुंदर है || ४६ सफा ॥

६० केशवदास व्रजवासी कश्मीर के रहनेवाले सं० १६०८ में उ० ।

इनकेेेे पद रागसागरोद्भव में बहुत हैं। इन्होंने दिग्विजय की और व्रज में श्राकर श्रीकृष्ण चैतन्य से शास्त्रार्थ में पराजित हुए | ४६ सफा ||

६१ केवलराम कवि ब्रजवासी सं० १७६७ में उ० ।

ऐजन । इनकी कथा भक्तमाल में है || ४२ सफा ॥

६२ कान्हरदास कवि व्रजवासी, विट्ठलदास चौबे मथुरावासी के पुत्र सं० १६०८ में उ०।

ऐज़न | इनके यहाँ जब सभा हुई थी, तब उसी सभा में नाभाजी को गोसाई की पदवी मिली थी ॥ ४५ सफा ॥