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पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/४१२

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कवियों के जीवनचरित्र

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५४ कुंभनदास ब्रजवासी वल्लभाचार्य्य के शिष्य सं० १६०१ में उ० । इनके पद कृष्णानन्द व्यासदेवजी ने अपने संगृहीत ग्रंथ रागसागरोद्भव रागकल्पद्रुम में लिखे हैं । इनकी गिनती श्रष्ट छाप में है || ३३ सफ़ा ॥.

५५ कृष्णानन्द व्यासदेव ब्रजवासी सं० १८०६ मे ३० ।

यह महात्मा महाकवीश्वर थे । इन्होंने सूरसागर तथा और बड़े बड़े महात्मा कवीश्वर कृष्णभक्तों के काव्य इकट्ठेकर एक ग्रंथ संगृहीत रागसागरोद्भवं रागकल्पद्रुम के नाम से बनाया है । इसमें सूरजी, तुलसीदास, कृष्णदास, हरीदास अग्रदास तानसेन, मीराबाई, हितहरिवंश, विठ्ठलस्वामी इत्यादि महात्माओं के सैकड़ों पद लिखे हैं । यह ग्रंथ किसी समय कलकत्ते में छापा गया था, और १००) रु० को मोल आता था | अब नहीं मिलता ॥४६ सफ़ा ।।

५६ कल्याणदास कृष्णदास पयाहारी के शिष्य सं० १६०७ में उ० ।

इनके पद रागसागरोद्भव में हैं || ३६ सफ़ा || 

५७ कालीदीन कवि ।

दुर्गा को भाषा के कवित्तों में महाकविता से उल्था किया है ॥ ४० सफ़ा ।।

५८ कालीचरण वाजपेयी विगहपुर जिले उन्नाव वि० ।

कविता में निपुण हैं | हमने इनका कोई ग्रंथ नहीं देखा

५६ कृष्णदास गोकुलस्थ वलभाचार्य के शिष्य सं० १६०१ में उ० ।

इनके बहुत पद रागसागरोद्भव में लिखे हैं, और इनकी कविता अत्यंत ललित और मधुर है । यह कवि सूरदास, परमानन्द और कुम्भनदास, ये चारों वल्लभाचार्य के शिष्य थे । कृष्णदासजी की कविता सूरदास की कविता से मिलती थी । एक दिन सूरजी बोले- आप अपना कोई ऐसा पद सुनाओ, जैसा