सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/४१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४०२
शिवसिंहसरोज


१ गंग कवि (१), गंगाप्रसाद ब्राह्मण एकनौर जिला इटावा अथवा चंदीजन दिल्लीवाले सं० १५६५ में उ० ।

गंग कवि को हम सुनते रहे कि दिल्ली के बंदीजन हैं श्रौर कवर वादशाह के यहाँ थे, जैसा किसी कवि ने बंदीजनों की प्रशंसा में यह कवित्त लिखा है -

कवित्त । प्रथम विधाता ते प्रगट भये वंदीजन पुनि पृथु-जज्ञ ते प्रकास सरसात है । मानों भूत सौनकन सुनत पुरान रहै जस को वखाने महा सुख बरसात है | चंद चउहान के केदार गोरी साहिज के गंग अकबर के बखाने गुनगात है || काग कैसो मास अजनास धन भाटन को लूटि घरै ता को खुराखोज मिटिजात है ॥ १ ॥

परन्तु अब जो हम ने जाँचा तो विदित हुआ कि गंग कवि एकनौर गाँव, जिले इटावा के ब्राह्मण थे । जब गंग पर गये. और जैनखाँ हाकिम ने एकनौर में कुछ जुल्म किया, तब गंग जी के पुत्र ने जहाँगीर शाह के यहाँ एक कवित्त अर्जी के तौर पर दिया, जिसका अन्तिम श्रंश था— 'जैनखाँ जुनारदार मारे एकनौर के' । जुनारदार फ़ारसी में जनेऊ रखनेवाले का नाम है, लेकिन खास ब्राह्मण ही को जुनारदार कहते हैं। खैर जो हो, गंगजी महाकवि थे । राजा वीरवल ने गंग को 'भ्रमर भ्रमत' इस छप्पै में एक लक्ष रुपए इनाम दिए थे। इसी प्रकार र जहाँगीर, वीरवल, खानखाना, मानसिंह सवाई इत्यादि सबने गंग को दान मान दिया है ।। ५४ सफ़ा ।।

२ गंगकवि (२), गंगाप्रसाद ब्राह्मण सपौली के जिले सीतापुर, सं० १८६० में उ० ।

सपौली गाँव इनको कविता करने के कारण माफ्री में मिला है। इनके पुत्र तीहर नाम कवि विद्यमान हैं। गंगाप्रसाद ने एक ग्रंथ