पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/४२१

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शिवसिंहसरोज


१० गदाधरराम ।
 

इनकी कविता सरस है ॥ ७७ सफ़ा ।। ११ गदाधर दास मिश्र व्रजवासी, स० १५८० उ०। इनके पद रागसागरोद्भव में हैं । इनका बनाया हुआ यह पद '‘सखी हौ स्याम के रंग रंगी और विकाय गई वह सूरति मूरती हाथ बिकी देख स्वामी नीव गोसाई, जो उस समय बड़े महात्मा थे, इनसे बहुत प्रसन्न हुए ॥ १२ गिरिधारी ब्राह्मण बैसवारा गाँव सातनपुरवावाले (१) सं० १६०४ में उ० । इनकी कविता या तो श्रीकृष्णचन्द्र के लीलासम्वन्धी है और या शान्त रस की । यह कवि पढ़े बहुत न थे । परन्तु ईश्वर के अनुग्रह से कविता सुंदर रचते ये ॥ ५७ सफ़ा ॥ १३ गिरिधारी कवि (२ )। स्फूट कवित्त इनके मिलते हैं ॥ ५८ सफ़ा ॥ १४ गिरिधरकवि, बन्दीजन होलपुरवाले (१) सं० १८४४ में उ०। यह कवि महाराजा टिकैतराय दीवान नवाब आसिफुद्दौला, लखनऊ के यहाँ थे ॥ ५८ सफ़ा ॥ १५ गिरिधर कविराय अंतरवेदवाले सं० १७७० में उ० इनकी नीति-सामयिकसम्बन्धी कुएडलियाएँ विख्यात हैं । ५९ सफ़ा । १६ गिरिधर बनारसी, बाबू गोपालचन्द्र साहूकाले हर्षचंद्र के पुत्र, श्रीबाबू हरिश्चन्द्रजू के पिता से १८३६ में उ० । इनका बनाया हुआ दशावतारकथामृत ग्रंथ बहुत सुन्दर है । और अलंकार में भारतीभूषण नाम भाषाभूषण का टीका बहुत अपूर्व बनाया है । इनके पुत्र बाबू हरिश्चन्द्र बनारस में बहुत प्रसिद्ध और गुणग्राहक थे । इनके सरस्वतीभंडार में बहुत ग्रन्थ थे। ६० सफ़ा ॥