पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/४२५

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शिवसिंहसरोज


३८ गुमानजी मिश्र (१) साँडीवाले सं० १८०५ में उ०। यह कवीशवर साहित्य में महानिपुण संस्कृत में महाप्रवीण काव्यशात्र को मिश्र सर्वमुख कवि से पढ़कर प्रथम दिल्ली में मोहम्मद शह बादशाह के यहाँ राजा युगलकिशोर भट्ट के पास रहे । पीछे राजा अलीअकबर खाँ मोहम्मदी अधिपति के पास रहे । अलीअकबर बड़े कवि थे । उनके यहां निधान, प्रेम इत्यादि बड़े बड़े कवि नौकर थे । निदान गुमानजी ने श्री हर्षकृत नैषध काव्य को नाना छंदों में प्रति श्लोक भाषण करि ग्रंथ का नाम कव्यकलानिधि रक्खा । पंचनली, जो नैषध में एक कठिन स्थान है, उसको भी सरल कर दिया । इस ग्रंथ के देखने से गुमानजी का पांडित्य विदित होता है । देखो, कैसा श्लोक प्रति उल्था है । तोटक कवितानि सुमेरुन बाँटि दियो । जलदानन सिंधुन सोकि लियो ॥ दुहूँ ओर बँधी जुलफै खुभली । नृप मानप और यश की अबली ॥ ६२ सफ़ा ॥ ३६ गुमान कवि (२) सं० १७८८ में उ०। इन महाराज ने कृष्णचन्द्रिका नाम ग्रंथ बनाया है ॥ ६४ सफ़ा ॥

४० गुलाल कवि सं० १८७५ में उ० ।

यह कविराज कविता में महानिपुण थे । इन कवित्तों और इनके बनाये शालिहोत्र ग्रन्थ से इनका पांडित्य प्रकट होता है ॥ ६५ सफ़ा ॥ ४१ ग्वाल कवि चन्दीजन (१) मथुरानिवासी सं० १८७६ में उ०। यह कवि साहित्य में बड़े चतुर हो गये हैं । इन संग्रहीत दो बहुत बड़े बड़े ग्रन्थ हमारे पास हैं। इनके नख़ाशिख, गोपीपचीसी, यमुनालहरी इत्यादि छोटे छोटे ग्रन्थ और साहित्यदूषण ,साहित्य दर्पण, भक्तिभाव, दोहा-'श्रृङ्गार ,श्रृङ्गार -कवित्त भी बहुत सुन्दर ग्रन्थ हैं ॥ ६७ सफ़ा ॥