पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/४३१

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शिवसिंहसरोज


सुंदर देखने पढ़ने योग्य हैं । इनके बारह शिष्य थे, और बारहों महान् कवि हुए । सबसे अधिक कवीश्वर मनभावन कवि हैं । चंदन राय नाहिल छोड़कर किसी राजा बाबू, बादशाह के यहाँ नहीं गये । एक बार किसी बुन्देलखण्डी रईस ने वंशगोपाल कवि का बनाया हुआ कूट कवित्त इनके पास अर्थ लिखने के लिये भेजा, और जब इनके अर्थ लिखे देखे तो बहुत प्रसन्न होकर पालकी सवारी को कुछ द्रव्यसहित भेजी चंदनराय वहाँ नहीं गये, केवल यह दोहा लिखकर भेज दिया।

दोहा- खरी टुक खर खरथुआ, खारी नोन सँजोग । एतो जो घर ही मिलै,चन्दन छप्पन भोग

॥१॥ ३१ सफ़ा ॥ (१)

चले कवि। इनकी कविता चोखी है ॥ ८६ सफ़ा ॥ १० चतुरविहारी कवि ब्रजवासी, सं० १६०५ में उ० । इनके पद रागसागरोद्भव में बहुत हैं ॥ ८६ सफ़ा ॥ ११ चतुरसिंह राना, सं० १७०१ में उ०। सीधी बोली में कवित्त हैं। ॥ ६४ सफ़ा ॥ १२ चतुर कवि । सुंदर काविता है ॥ ६५ सफ़ा ॥ १३ चतुरविहारी (२)। ऐजन् ॥ ३५ सफ़ा ॥ १४ चतुर्भुज । ऐज़न् ॥ १५ सा ॥ १५ चतुजदास १६०१ में उ०। रागसागरोद्भव में इनके बहुत पद हैं । यडू महाराजा करौली के राजा स्वामी विट्ठलनाथजी गोकुलस्थ के शिष्य थे । अष्टछाप में इनका भी नाम है ॥ ६६ सफ़ा ॥