बहादुर ने ठाकुर को बहुत रुपए इनाम में दिए । हिम्मतवहादुर संवत् १८०० में थे । कवि कालिदास ने हज़ारा संवत् १७४५ के करीब बनाया है, और उसमें ठाकुर के बहुत कवित्त और ऊपर लिखा हुआ कवित्त भी लिखा है । इससे हम अनुमान करते हैं कि ठाकुर कवि बुंदेलखएडी अथवा असनीवाले भाट या कायस्थ कुछ हों, पर अवश्य संवत् १७०० में थे। इनका काव्य महा- मधुर लोकोक्ति इत्यादि अलंकारों से भरापुरा सर्व प्रसन्नकारी है । संवैया इनके बहुत ही चुटीले हैं । इन कवित्त तो हमारे पुस्तका- लय में सैकड़ों हैं, पर ग्रन्थ कोई नहीं । न हमने किसी ग्रन्थ का नाम सुना ॥ ११७ सफ़ा ॥ (१)२ टाकुरप्रसाद त्रिपाठी (१) किशुनदासपुरजिले रायबरेली सं० १८८२ में उ०। यह महान पण्डित संस्कृतसाहित्य में महाप्रवीण थे । सारे हिंदू- स्तान में काव्य ही के हेतु फिरकर ७२ बस्ते पुस्तकें केवल काव्य की इकट्ठ की थीं । अपने हाथ से भी नाना ग्रन्थ लिखे थे । बुंदेलखंड में तो घर-घर कवियों के यहाँ फिरकर एक संग्रह भाषा के कवियों का इकट्ठा किया था । रसचंद्रोदय ग्रन्थ इनका बनाया हुआ है । तत्पश्चात् काशीजी में गणेश और सरदार इत्यादि कवियों से बहुत मेल-जोल रहा । अवधदेश के राजा-महाराजो के यहाँ भी गये । जब इनका संवत् १९२४ में देहान्त हुआ, तो इन के चारों महामुर्ख पुत्रों ने अठारह-अठारह बस्ते बाँट लिये और कौड़ियों के मोल बेच डांले । हम ने भी प्रायः २०० ग्रंथ अंत में मोल लिये थे ॥ ११६ सफ़ा ॥३ ठाकुरराम कवि । इनके कविलं शांतरस के सुंदर हैं ॥ ११३ सफ़ा ॥
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