राजा के यहाँ जगनिक का मानदान था । चंद ने रासा में बहुत जगह इनकी प्रशंसा की है।५३ जघरेश चंदजन, बुंदेलखंडी,वि०। १ टोढ़र कधि, राजा टोड्रमल खत्री पंजाबी, सै० १५८० में उ० । यह राजा टोडरमल अकबर बादशाह के दीवानआला थे । इन के हालात से तारीख-फारसी भरी हुई है ।अरबी, फारसी और संस्कृत में महानिपुण थे । श्रीमद्भागवत का संस्कृत से फ़ारसी में उल्या किया है । और भाषा में नीतिसंबंधी बहुत कवित्त कहे हैं । इन महाराज ने दो काम बहुत शुभ हिन्दुस्तानियों के भलाई के लिये किये हैं, एक तो पंजाब देश में खत्रियों के यहाँ रियाज-तीनसालामातम का उठाकर केवल वार्पिक रस्म को नियत क़िया; दूसरे फ़ारसी हिसाब-किताब को ईरान देश के माफिक हिन्दुस्तान में जारी किया । सन् १९८ हिजरी में शहर लाहौर में देहांत हुआ ।। ११७ सफ़ा ॥२ टेर कवि मैनपुरी जिले के वासी, सं० १८८८ में उ० ।इन्होंने सुंदर कविता की है ।३ टहफन कवि पंजाबी । पांडवों के यज्ञ-इतिहास की कथा संस्कृत से भाषा में की है ।। १ ठाकुर कवि प्रचीन, सं० १७०० में उ० । ठाकुर कवि को किसी ने कहा है कि वह असनी-ग्राम के बंदी जन थे । संवत् १८०० के करीब मोहम्मदशाह बादशाह के ज़माने. में हुए हैं । और कोई कहता है कि नहीं, ठाकुर कवि कायस्थ बुंदेलखण्ड के वासी हैं । किसी बुंदेलखएडी कवि का बयान है। कि छत्रपुर, बुंदेलखण्ड में बुंदेलालोग हिम्मतवहादुर गोसांई के मारने को इकट्ठा हुए थे। ठाकुर कवि ने यह कावित्त, ‘समयो यह पीर बराबने है'लिख भेज़ा । सब बुंदेला चले गये,और हिम्मत
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