काल में जो रामायण न होती, तो हम ऐसे मूर्खो का बेड़ा पार न लगता । गोसाईजी श्रीमयोध्या जी, मथुरा-वृन्दावन,कुरुक्षेत्र, प्रयाग, वाराणसी, पुरुषोत्तमपुरी इत्यादि क्षेत्रों में बहुत दिनों तक घूमते रहे हैं । सबसे अधिक श्रीअयोध्या, काशी, प्रयाग और उत्तराखंड, वंशीवट ज़िले सीतापुर इत्यादि में रहे हैं । इनके हाथ की लिखी हुई रामायण, जो राजापुर में थी, खंडित हो गई है । पर मलिहाबाद में आजतक सम्पूर्ण सातों कांड मौजूद हैं । केवल एक पन्ना नहीं है । विस्तार-भय से अधिक हालात हम नहीं लिख सकते । दो दोहे लिखकर इन महाराज का वृत्तांत समाप्त करते हैं। दोह-कविता कर्ता तीनि हैं, तुलसी, केशव, सूर । कविता खेती इन लुनी, सीला घिनत मजूर ॥ १ ॥ सुर सुर तुलसी ससी, उद्गन केसवदास । श्रव के कवि खद्दोतसम, जँह तँह करत प्रयास ॥ २ ॥ १२० सफ़ा | २ तुलसी (२ ) श्रीमोझाजी, जोधपुरबाले । सुन्दरीतिलक में इनके कवित्त हैं। शुझारस चोखा वर्णन किया है ॥ १२३ सफ़ा ॥ ३ तुलसी (३ ) कवि यदुराय के पुत्र, सं० १७१२ में उ० । यह कवि कविता में सामान्य कवि हैं । इन्हों ने कविमाला नाम एक संग्रह बनाया है, जिसमें प्राचीन ७५ कवियों के कवित्त लिखे हैं । ये सब कवि संवत् १५०० से लेकर १७०० तक के हैं । इस संग्रह के बनाने में इस ग्रन्थ से हम को बड़ी सहायता भिली है ॥ १२३ सफ़ा ।। ४ तुलसी (४) इनका कार्य सरस है ॥ १२४ सफ़ा ॥
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