पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/४४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४२९
कवियों के जीवनचरित्र

५ तान सेन कवि ग्वालियरनिवासी, उ० १५८८ में बनाय उ० । यह कवि मकरन्द पाँड़े गौड़ ब्राह्मण के पुत्र थे । प्रथम श्रीगोसाई स्वामी हरिदासजी गोकुलस्थ के शिष्य होकर काव्यकला को यथावत् सीख कर पीछे शेख मोहम्मद गौस ग्वालियरखासी के पास जाकर संगीतविद्याण के लिये प्रार्थना की। शाहसाहब तंत्रविद्या में अद्वितीय थे । मुसलमानों में इन्हींको इस विद्या का आचार्य सब ततारीखों में लिखा गया है । शाह साहब ने अपनी जीभ तानसेन की जीभ में लगा दी । उसी समय से तानसेन गानविद्या में महानिपुण हो गये । इनकी प्रशंसा आईन-अकबरी में ग्रन्थकर्ता फहीम ने लिखा है। कि ऐसा गानेवाला पिछले हज़ारा में कोई नहीं हुआ । निदान तानसेन ने दौलतखाँ, शेरखा बादशाह के पुत्र, पर आशिक होकर उनके ऊपर बहुत सी कविता की । दौलत खाँ के मरने पर श्रीबांधवनरेश रामासिंह बघेला के यहाँ गये । फिर वहाँ से श्रकषर बादशाह ने अपने यहाँ बुला लिया । तानसेन और सूरदासजी से बहुत मित्रता थी । तानसेनजी ने सूरदास की तारीफ में यह दोहा बनाया- दोहा- किधौ सूर को सर लग्यो, किधौ सूर की पीर । किधौ सूर को पद लग्यो,तनमन धुनत सरीर ॥ १ ॥ तब सूरदासजी ने यह दोदा कहा दोहा-विधना यह जिय जानि कै सेस न दीन्हे कान । धरा मेरु सव डोलते, तानसेन की तान।। २ ॥ इनके ग्रन्थ रागमाला इत्यादि महा उत्तम काव्य के ग्रंथ हैं.॥ १२८ सफ़ा । ६ तारापति कवि, सं० १७६० में उ०। कवित्त नखाशिख के सुंदर हैं ॥ १२४ सफ़ा ॥