कबेि की नादि जगत की रीति देख चुप मन मानो हैं । खोल
देही हियो सघ भाँतिन साँ भाँति भाँति गुन ना हिरानो गुन गाइक
निो है ॥ १ ॥ देखत के नीके परिनाम बहु आदर के देखत
भई सदा जीव में जरे रहें। भेद भेद यूकें टेवत न आयें ला
पए के समूहू सिन्धु खिन अरे रहें ॥ कादर कहत जे लटीन के
तलासिचे को हाटबाट टू में दरबार में खरे हैं । निंदा को चु नेम
जिंन्हें उनकी आधार परस्वारथ मिटाईवे के खोज ही परे हैं ॥२॥
५६, किशोर कवि दिल्लीवाले
( किशोरसंग्रह )
कोकिला कलपी कूचे जमुना के नीर तीर बीर ऋतुराज को समाज
सरस्यो परै । भनत किसोर जोर अंबन कदेवन ते मंजु मंजरीन
ते सुगंध सरस्यो परै ॥ कामविथा मेटन को उखन समेटन को भेंटन
को प्रीतम को प्रान तरस्यो परें । आपनि ते अंवर ते दूसन दिगंबर
ते बैहरि ते बन ते वसंत वरस्यो परे ॥ १ ॥
वरसे बस कुंजन फू लता मुख मंजु मयून को सरलै ।
सg घोर किसोर करें घन ये चपता चल चारु कला दरसे ॥
आलि हो बलि तू चलि चेगि हहा उत तो विन मानपिया तरसे ।
उमड़े दुमड़ घुमड़ घन आज मिहीं दियाँन मड़ो वर॥ २॥
फूलन दे अवै टेसू कदैवन अंवन बौरन छापन दे री ।
री मधुत्त मकन मुंजन कुंजन सोर मचावन दे री ॥
ययों सहि है सुकुमारि किसोर अरी कल कोकिल गावन दे री।
आषत ही वनि है घर कंतहेि वीर बसंतति आठन दे री ॥ ३ ॥
चहुं ओरन कौंधि जगावें किसोर जगी प्रभा जेबन जूटी परे ।
तिहि वे करि मान Jगारं अनी अवनी घनी इद्वटी पर ॥
ोर १२ चमक । ३ बीरबलूटी।