पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/४७

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शिवसिंहसरोज


सीस ऊपर निहोर की ॥ आरसी अँगूठी मद्धि देखि प्रतिबिंब ता में भनत किसर जरदई मुख भोर की । गौरीपति मेरी प्रीति होय ब्रजभूषन स हम सों न होय प्रीति नन्द के किसोर की . 4 ६०, कालिदास त्रिवेदी बनपुरा अंतरेबेक्रवाते गहन गढ़ी से गतुि महल मढ़ी से महेि बीजापुर औयो दल मलि उजराई में। कालिदास कोष्यो बीर औलिया अलमगीर तीर तरवारि गब्बो पुहैमी पराई में ॥ घूद ते निकसि महिमंडल घमंड मची लोहू की लहरि हिमगिरि की तराई में । गाडुि के घु भंडा आड़ कीन्ही पदशाह तात्ते डकरी चमुण्डा गोलकुंडा की लड़ाई में ॥ १ ॥ बाग के वगर अनुरागभरी खेॐ फाग बाल अलबेली मनमोहनी गुपाल की । कालिदास ललित ललौहीं छवि झलकति नथ मुक्तान की कपोल दुति भाल की ॥ चन्द क राज अर बिंद आज कौन काज जाकी छवि देखन को बदन रसाल की। भुक्कुटी तिलक पर बरुनी पलक पर बिखूरी अलक पर गरद गुलाल की ॥ २ ॥ रतिरन बिखे ले रहे हैं पतिसनमुख तिन्हें बक- सीस बकसी है मैं बिसि के 1 करन को कंकन उरोजन को चन्द्रहार कटि की सु किंकिनी रही है कटि लसि के ॥ कालिदास आनन को आदर सो दीन्ह पान नैनन को कब्जल रवो है नैन बसि के । एरे बैरी बार ये रहे हैं पीठपाछे याते बार बार बाँधति हौं बार बार कासि के ॥ ३ ॥ बूमरै करकं मंजु अमल अनूप तेरो रूप के निधान कान्हू मो तन निहारि दे । कालिदास कहै मेरे पास हंस हेरि हरि माथे धरि मुकुट लछुट कर डारि दे ॥ खैबर कन्हैया मुखचन्द्र की जुन्हैया चारु लोचनचकोरन की प्यासनि निवारि दे। मेरे कर मेंहदी लगी है नन्दलाल प्यारे लट उरझी १ ज़रदी।२ लेना । ३ पृथ्वी ।