पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/४८

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शिवसिंहसरोज

शिवरिंहसरोज २९ है नकवेसरि सम्हरि दे ॥ ४ ॥ चंद्रमई चम्प जराष जरकसम आघत ही नैल वाले कमलई भई । कालिदास मोद-द-ग्रा—द विनोदमई लालरंगई भई बसुधा सुधामई ॥ ऐसी बनी बान सों मदनब्बकाई रसिकाई की निकाई लखि लगन लगी नई । नेह को हिरे करि गुपालै मोहितें करि सखिन दुचितै करि चित करि चली गई ॥ ५ ॥ प्रथम समागम के औौसर नवेली बाल केलि की कलान पिय प्यारे को रिझायो है । देखि चतुराई मन सोच भयो प्रीतम के लखि परनारि सन सम्भ्रम भुलाो है ॥ कालि दास ताही समै निपट प्रवीन तिया काजर लै भीत हू में चित्रक बनायो है । यात लिखी सिंहिनी निकट गजराज लिख्यो योनि ते निफसि छौन मस्तक दें ग्रायो है ॥ ६ ॥ ( वर्धाघिनोद ग्रन्थे ) दोहा - नगर सु जम्बूद्वीप में, जैम्बू एक अन्ष । तरे बने त्रिपदा नदी, त्रिपथगामिनीरू ॥ १ ॥ तिलक जानि जा देश को, दुघने होत भयभीत । जाहिर भयो जहान में, जालिम जोगाजीत ॥ २ ॥ वंशवर्णन । छठेकें । मालदेव महिपाल प्रथम पुनि रामसिंह हुछ । तसिंह समरथ हrय किय बहुरि सकल घुख ॥ माधवसिंह प्रसिद्ध भयो जग रामसिंह पुनि । पुनि प्रचण्ड गोपालसिंह पुत्र हरीसिंह पुनि ॥ gनि गोकुलदास नरिंदमनि तनय ठ लक्ष्मीसिंह हुवं । रघु ऋसठेस पूरन वखत त्तिसिंह जिमिधरनि ध्रुव ॥ १ बच्चा । २ जामुन का पेड़ । ३ शत्रु। ४ हाथ में की ।५ हुए ।