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शिवसिंहसरोज


बोधित हैं बुध वेद भनै बर वारतिया नित गानहि गाजत ।
श्रीरनजीत की देखि प्रभा सव भूमि को भूपन काँथा विराजत ।। २ ॥

१६२, गोकुलविहारी कधि

झूमत झुकत मतवारो अति भारो गज गरजन गरजत महा मलै काल की । कोमल कमल उत गोकुलविहारीलाल जैसी कोऊ कुंज में फिरन कंज नाल की ॥ देखादाखी भई सूँड़ि चापि के द्विरद दौरयो केहरि सो सरस गरुर नंदलाल की । कंस के अ– खारे की सी दौर नाहि विसरत बारन की धावन औ आवन गु– पाल की ॥ १ ॥ १६३. गंगाराम कवि गंग सीस पे धरे अंग प्ररशंग भवानी। वाहन प मखरेखरेख भैरव अगवानी ॥ सिंध चौरासी खरे सोइ सघ सीसनवर्ट । चौंसठि जोगिनि खीं भूत ताथेइ मचानें। गंगराम कटु सिघाषि सकल सभा आनैद हेिथे । सरखंगी को ध्यान धरु घरगी आासन किये ॥ १ ॥

१६४गुरुदीन पड़े कवि
( वार्डनोहरपिंगल )

दोहा-कहत चतुरमुख पंचपति, नाय सीस तिन तीन । बाकमनोरथ ग्रंथ मति, प्रगटति कवि गुरुदीन ॥ १ ॥ बहु ग्रंथन को विविध मंत, अति विस्तार न पार । कहत सुकवि गुरुदीन निज, मति मन रुचि अनुसार ।। २ ॥ सिसिर सुखद ऋतु मानिये, माह महीना जन्म । संवत नैभ रंस बसु सेंसी, वाकमनोहर जन्म ॥ ३ ॥


१ वेश्या । २ ब्रह्म ।