पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/१०

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शिवा बावनी

MnARAJA शिव बावनो मैरों भूत प्रेत भूरि भूषर भयंकर से, . जुत्य जुत्थ जोगिनी जमाति जुरि आई है। किलकि किलकि कै कुतूहल करति काली, डिम डिम डमरू दिगंबर वजाई है। सिवा पूछ सिव सों 'समाजु अाजु कहां चली', काहू पैसिवा नरेस भ्रकुटी चढ़ाई है ॥३॥ भावार्थ रणभूमि में मरे हुए वीर पुरुशे का रुधिर और मांस मिलने की आशा से भृत, चुडेलें, राक्षस और राक्षसियाँ मिल 'कर आनन्द से गा रहे हैं । पहाड़ी के समान डरावने भैरव, बहुत से भूत, प्रेत और योगिनी मंडली वाँध बाँध कर एकत्रित हो रही हैं। प्रसन्नता के मारे काली श्रानन्द से नाच रही है, और शिव जी डमरू बजा रहे हैं। यह सब आनन्दोत्सव देख कर पार्वती जी विस्मित हो शिव जी से पूँछती हैं, कि आज आपकी मंडली कहाँ चली ? शिव जी उत्तर दे रहे हैं कि शिवा जी किसी शत्रु पर क्रोधित हुए हैं। टिप्पणी यहां प्रस्तुत प्रशंसा अलकार है । जो बात असल में कहनी हो, उसे साट रूप में न कह कर ऐसे शब्दों में कहना चाहिये जो यथार्थ प्रकट हो बाय । जैसे शिवजी के कहने का यह आशय था कि रणभूमि में हमारे भूत-प्रेत गण मांस-भक्षण करेंगे। किन्तु, ऐसा न कह कर इतनाही संकेत किया कि शिवा जी किसी पर क्रोधित हुए हैं । -6, और। जुत्थ-यूथ, मुंड। डिमडिम हमरू के बजने का शब्द समर-एक छोटासा बाजा, जिस के दोनों सिरों पर चमड़ा मदा