पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/२३

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शिवा बावनी

शिवा बावनी किबला मुसलमानों का तीर्थस्थान, पश्चिम दिशा । और समान । आगि लाई है-प्रागी लगा दी है। नवरंगजेब-औरंगज़ेव। . हाथ तसबीह लिये प्रात उठ धन्दगी कों, आपही कपटरूप कपट सुजप के। आगरे में जाय दारा चौक में चुनाव लीन्हो, छत्रहू छिनायो मानो मरे बूढ़े बप के॥ कीन्हों है सगोत घात सो मैं नाहिं कहाँ, फेरि पील पै तोरायो चार चुगल के गप के। भूषन भनत छरछन्दी मति मन्द महा, सौ सौ चूहे खाय के विलारी बैठी तप के ॥१४॥ भावार्थ हे औरंगजेब तुम स्वयं कपट के रूप हो । बड़े प्रातःकाल उठ कर लोगों को दिखाने के लिए तो माला लेकर परमेश्वर का भजन करते हो, किन्तु कर्म ऐसे हैं कि आगरे के किले में अपने सगे भाई दारा को जीता गड़वा दिया, जिन्दा बाप को मरा समझ कर उसके नाम पर प्रापही राज्य करने लगे। अधिक मैं कहाँ तक कहूँ, बिना ही विचार किये चुगल दूतों के कहने सुनने से अपने ही वंशवालों को हाथी से दवा कर मरवा डाला। तुम बड़े ही कपटी और खोटे हो पर लोगों की . दृष्टि में महात्मा बन रहे हो, मानो सैकड़ों चूहे खा कर विल्ली तपस्या करने को बैठी हो।