पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/४५

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शिवा बावनी

शिश बावनी कवित्त-मनहरण अफजल खान गहि जाने मयदान मारा, बीजापुर गोलकंडा मारा जिन आज है। भूषण भनत फरासीस' त्यों फिरंगी मारि, हबसा' तुरुक डारे पलटि जहाज है। देवित में खान' रुसतम जिन खाक किया, सालति सुरति आजु सुनी जो अवाज है। चौंकि चौकि चकता कहत चहुंधा ते यारो, लेन रहो खबरि कहां लौ सिवराज है ॥३२॥ भावार्थ दिल्लीश्वर औरंगजेब चौक चौंक कर अपने सरदारों से कहता है कि जिसने अफज़ल खाँ को पकड़ कर उस पर विजय प्राप्त की, जिसने अभी हाल में ही गोलकंडा वालों को पराजित किया, जिसने फरासीलियों और फिरंगियों को पछाड़ दिया, जिसने तुर्क और हबसियों के जहाज डुबा कर उनको हरा (१) सूरत (गुजरात) को लूटते समय शिवा जी के साथ फरासीसियों और पुर्तगाल वालों ने कुछ छेड़छाड की थों । इमी पर नाराज हो शिवा जी ने इन लोगों की भी कुछ बस्तियां लूटी थीं । (२) मिस साल शिवा जी ने सूरत लूटी थी, उसी साल मका जाने वाले कुछ मुसलमानों (सैयदों) की नौकाएँ भी लूटी थीं। (३) सन् १६५६ ई. में परनाले के निकट शिवाजी ने रुस्तमे जमा खा को बड़ी भारी शिकस्त दो और उसे कृष्णा नदी के उस पर तक खदेड़ दिया।