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पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/५७

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शिवा बावनी

शिवा बावनी Viraradhnare www. भावार्थ महाराजा शिवाजी के नगाड़ों की गड़गड़ाहट सुनकर औरंगज़ेब पाश्चर्य से चौक चौंक उठता है। दिल्लीवाले सदा 'डरते ही रहते हैं । शिवाजी का कोई न कोई समाचार सुनने को सब लोग उत्सुक ही बने रहते हैं । बीजापुर का शासक उदाल चेहरा किये रंज करता रहता है। अंग्रेजों की नसें डर के मारे फड़कती रहती हैं । गोलकुंडा-का राजा कुतुबशाह थर थर काँपता रहता है और अफरीका के हबशी राजा भयभीत होकर भागने की युक्ति सोचते रहते हैं। आपके नगाड़ों की धुंकार से कितने हो बादशाहों के कलेजे फटे जाने हैं। टिप्पणी यहां अतिशयोक्ति अलंकार है। इसका लपण छन्द ३६ में दिया है। दहमति हरती है। करपति खींचती है । भरकति है-हर कर भागती है। मौरंग कुमाऊं औ पलाऊ' बाँधे एक पल, कहाँ लौं गिनाऊं जेय भूपन के गोत हैं। भूषन भनत गिरि विकट निवासी लोग, बावनी बर्बजा' नव कोटि' धूंध जोत हैं। (१) मौरंग, कमा और पकाऊ कई छोटे छोटे राज्य है । (२) बावनी- बजा से वर्तमान बरार मान्त का बोध होता है। (३) मवकोठी मारवाड़ प्रान्त में है।