पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गृङ्गारनिर्णय। कियो बहती हैं। गेह को भार जसोमति बार को आज हि सौपि दियो चहती हैं ॥ मोहि अकेली यहां तजि दास जू जीवन लाहु लियो चहती हैं। आली कहा कहों या घर को सि- गरौ मोहिं ग्वाय जियो चहती हैं ॥ ११८ ॥ अनुनयना विदग्धा यथा। चारि चुरैल बसे यहि भौन कियो तिन चेरो सो चौधरी दानौ। केते बिदेसी बसाय ब. साय तिनै सनमानत से छल ध्यानी ॥ दास द- याल जो होती कोज तो भगावती याहि सि- खाय सयानौ । हाय फस्यो केहि हेत कहां तें धौं आय बस्यो यह बावरी बानी ॥ ११६ ॥ दूजी अनुसयना विदग्धा यथा- -कचित्त। न्यारे * के सदन तें उड़ाई गुड़ी प्रानप्यारे संज्ञा जानि प्यारौ मन उठौ अकुलाय के । १T- वति न घात जात देख्यो सुखव्यात बोतो रौतो कियो घरोतब नौर टरकाय के घर की रि-

  • इनारे अर्थात् कुंआवाले घर से।