पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/८

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शृङ्गारनिर्णय। - -- सठ पति यथा --सवैया। वा दिन को करनी उनकी सम मातिन के ब्रज में रही छाय के । दास जू कासों कहा क- हिये रहिये नित लाजन सौस नवाय के मेरे चलावतहौं चरचा मुकरै सखि सौ हैं बड़ेन को वाय तू निज ओर सो नन्दकिशोर सों क्यों न ककू कहती समुझाय कै ॥ २२॥ सठ उपपति था। मिलिबे को करार करौ हम सो मिलि औ. रन सों नित आवत हो। इन बातन हौंही गई करती तुम दास जू धोखो न लावत हो ॥ नट- नागर हो जू सही सबही अँगुरी के इसारे न- चावत हो। पै दई हमहूं बिधि थोरी घनी बुधि काहे को बातें बनावत हो ॥ २३ ॥ पृष्ट लक्षण -दोहा। लाजा गारी मार को छोड़ दई सब बास देख्यो दोष न मानई नायक पृष्ट प्रकास ॥२४॥ यति पृष्ट यथा- - सवैया । उपरैनी धरे सिर भावती की प्रति रोम प.