पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/९२

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शृद्वारनिया किबो आदरिबो है। सौंहें दिमायबो गारी सुना- थबो प्रेम प्रसंसनि उच्चरिकों है। लातन मारिनो मारिबो वह निसंकट अंकनि को अरिबो है। दास नबेली को केलि समै में नहीं नहीं कीबो हहा करिबो है ॥ २६८॥ बिब्बोकहार लक्षय-दोहा। जहूँ पौतम को करत है कपट अनादर वाल। कछु इरिषा कछु सद लिये सो बिब्बीक साल ॥ यथा सवैया मान के बैठी सखीन के सम्मात बूभिबे को पिय प्रेम प्रभाइन । दास दसा सुनि हार ते प्रौतम आतुर आयो भयो टुचितादून ॥ बूकि रह्यो पै न हेत लह्यो कहूं अन्त कहा कै गह्यो तिय पाडून । पाली लखै बिन कौड़ी को को- तुक ठोढ़ी गहे बिहँसै ठकुराइन ॥ २७० ॥ देखती हो इहि ढीठे अहोर को कैसे धौं भीतरी साबन पायो। दास अधीन है कौनो सलाम न दूरि ते दोन बै हेत जनायो। बैठि-