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श्यामास्वप्न

मढ़कर हृदय-कपाट के द्वार पर लटका लिया . पत्रवाहक को सकुच कर चार सहस्र स्वर्ण पारितोषक दिये . उस गरीब का काम ही हो गया . हमारी तुम्हारी जय मनाते घर गया . पावनारण्य से बुधवार के दिन सायंकाल मकरंद और मधुकर के साथ चलकर मार्जारगुहा में पहुँचे, आज केवल एक कोस चलना पड़ा . इस अनूप देश का अधिपति एक वृद्ध भील जिसका नाम विराध है मार्जारगुहा में बास करता है, इसके दो चार तुरंग और हाथी सदा संग में रहते (हैं ) . इसके विकट आयुध भाला और फरसा थे. तलवार कटि में लटकी रहती-हाथी का सा भारी मस्तक-कराल दंष्ट्रा-सिर पर फूल की कलगी खुसी-वृक्ष से भुजा बिकट गह्वर सा उदर-अजगर से दोनों पाँव चट्टान सी छाती हाथी पर सवार तरवार आगे धरे ऐसा भयानक लगता था मानौ भयानक रस आज मूर्तिमान् होकर सजीव पर्वत पर बैठा चला आता है . यहाँ बहुधा बन दूर दूर पर हैं. यह महीप मेरी अगुआनी के लिए महासागर तक आया. आज मनुष्य और पशु की वार्तालाप जो पुराने अथों में लिखी है ठीक ठीक सत्य और प्रत्यक्ष देखने में आई .

"नर बानरहि संग कहु कैसे"

इस चौपाई का मानों अर्थ खुल गया इस ग्राम में एक दिन चूतवाटिका में डेरा लगा कर रहा . अतिथि-पूजन भली भाँति हुई और चलते समय मधुकर के हाथ गरम कर दिए . यह एक ब्राह्मण हैं, यहाँ यही लेखा लगा .

"वृहस्पति के दिन हम लोग वीरपुर पहुँचे . यहाँ का ग्रामपति विराध से कुछ सभ्य है इसका नाम खर है-यहाँ मलयज नामक वन निकट है यह खर उस वन का केसरी सा दिखता था . इसका रूप विराध से कुछ थोड़ा ही अच्छा है इस लिए अधिक नहीं लिखते . यह ग्राम मैदान में है . जलप्राय वन के निकट ही यह बसा है . यहाँ के .