उत्तर
श्रीः
वृंदा ने हमैं आपकी पाती दी . आप हमारे विरह में क्यौं -अब क्या लिखू ? भूल गई ! क्षमा करो . चलते समय मैंने कुछ कहा था न ? उत्तर क्यों नहीं दिया, दूर निकल गए, क्या चिंता--
"हिरदे से जब छूटि हौ मरद बदौंगी तोहि
दोहा
पंच द्यौस दस औधिकर गए नाथ केहिं देश ।
सो बीती अब प्रान कहु र हैं सु किमि तन लेश ।।
वीर धीर मुहिं तजि गयो लै गौ असन रु पान ।
हा प्यारो क्यों छोडिगो दहमारे संठ प्रान ।।
तुम तो चतुर हो इसे सत्य जान जो उचित हो सो करना-
यह पत्र उसी रीति पर भेज दिया और उनके पास भी पहुँच गया. उसके उत्तर में उन्होंने एक लंबा पत्र पीतवन से लिखा , उसमें प्रति दिन का वृत्तांत था .
"प्राणप्यारी, तुम्हारा पत्र मुझे पीतवन में मिला मुझे इतना सुख हुआ कि मैं अपने को भूल गया . जिस समय दूत ने तुम्हारी पाती मुझे दी मैं शिवरूप साक्षात् हो गया इधर उधर हूँढ़ने लगा कि इस दूत को क्या दूँ . पाती से आधी भेट होती है . उसके प्रत्यक्षर मेरे लिए रामनाम थे. बड़ी देर तक उलट पलट बाँचा और सोने के संपुट में . -