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पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/११८

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श्यामास्वप्न

बने हुए हैं जो सजल होने के हेतु अति मनोहर लगते हैं . निझरों का घर्धर शब्द-वनजंतुओं का गर्जना-सिंह व्याघों का तरजना जिसे सुन विचारी कोमल बालाओं के हृदय का लरजना-इस दुर्ग के गुजों ही से बैठे सुन लो . सुंदर सरोवर बरोबर बरोबर जिन पर तरोवर झुके हैं शोभा बढ़ाते हैं . यहाँ से लौट कर बाणमर्यादा के 'रसालाराम' में रात भर विश्राम किया . तुम्हारा स्वप्न आधी रात को देखा . ऐसा देखा मानो तुम्हारे पिता ने तुम्हें कहीं भेज दिया हो और ज्यौंही मैं उन्हें निवारने लगा मेरे नेत्र खुल गए करेजा कॉप उठा . होनहार प्रबल होती है . पर भावी वियोग यद्यपि स्वम ही था तथापि शोक का अंकुश कुश की भांति हृदय में गड़ गया था कुछ गड़बड़ तो नहीं हुआ , लिखना . पर तुम्हारी प्रीति की कथा यहाँ बक विदित है ."

के उदर "सोमवार २-'आज मैं वाणमर्यादा से वाराहगर्त को आया. छोटे छोटे ग्राम बहुत से विराम के लिए पथमें मिले पर कहीं नहीं ठहरा. वाराहगः नामक वन अच्छा सुहावना लगता है . यहाँ के पर्वत और शैल आकाश को अपने अपने शृंगों से छूते जान पड़ते हैं . यह तराई का प्रदेश आगे बढ़ने से ऐसा लगता है मानों अघासुर में हम लोग ग्वाल बाल के (की) नाई घुसे जाते हों, ओर सघन शैल की श्रेणी-बीच में सूक्ष्म मार्ग--मानों घन चिकुर में सेंदुर भरी माँग- यहाँ की मृत्तिका लाल होती है . मध्याह्न के उपरांत आखेट के लिए गए थे. ४० मनुष्यों ने मिलकर खेदा किया पर केवल एक शशक निकला सो भी हे शशांक-बदनी तुम्हारे नाम के प्रथमाक्षर सरीखा जान छोड़ दिया गया . आज का दिन अच्छा कटा सभी लोग डेरे में बैठे बैठे वनों की नाना कथा कह रहे हैं .

"मंगल ३-आज मंगल ही मंगल है , लोग कहते हैं "जंगल में मंगल"-सो ठीक हैं-यहीं पर होली का दंगल भी आज हुआ और