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पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/१४१

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श्यामास्वप्न

सब आ गए." परदा उठाई और वे सब कविता कुटीर में घुस गए मक-रंद उनके उसीसे के निकट बैठा और सितारिया भी सन्मुख अपना वाद्य आगे धर सलाम कर बैठ गया

श्यामसुंदर ने सितारिये की ओर देखा और मकरंद से कहा “ए गुनी कहाँ से आए हैं और इनका गुन जस कैसा है ?"

मकरंद ने कहा "सौम्य-मुझसे इनसे प्राचीन परिचय है. ये बड़े भारी गुनी के पुत्र हैं जिनका नाम गान और वाद्य विद्या में इस देश में चिरकाल से विख्यात है, उनकी विद्या ऐसी उत्कृष्ट थी मानौ गंधर्षों से गान नारद मुनि से बीना और तुंबुर से तम्बुरा सीखा हो. मलार का जब कभी अलाप करते कुऋतु में भी बादल छा जाते. दीपक राग के टेरते ही आपसे आप दीप भी प्रज्वलित हो जाते थे. इनने बहुत कुछ राज दरबारों से कमाया था. उनका नाम रागसागर था. ये उन्हीं के पुत्र प्रेम लालित वीणाकंठ हैं. इनका निवास पहले क्षीरसागर के द्वीपान्तर में था अब इसी श्यामापुर में अपने दिन काटते हैं. मैंने भी एक दो चीजें इनसे ले ली हैं. आपका नाम और यश सुन चले आये हैं, आज्ञा हो तो अपना गुन सुनावें ."

श्यामसुंदर बोला “यह तो अच्छी बात है मेरा भी मन बहलेगा. तो अब होने दो पर तुम तबला ले लो."

मकरंद तबला के बजाने में क्षिप्रकर था और सम विषम तालों का ज्ञान भी था उधर वीनाकंठ ने भी सितार ठीक किया और श्यामसुंदर के आज्ञानुसार यह गजल गाई और बजाई .

ऐ. तबीबो मेरे जीने के कुछ आसार नहीं

मत करो फिक्रो दवा

उस मसीहा को दिखा दो तो कुछ अाज़ार नहीं

अभी हो जायं शिफा

. मत