पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/१५

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कमलाकांत और श्यामसुंदर सूक्ष्म-दृष्टि से देखने पर कवि जगमोहन ही जान पड़ते हैं ; कारण डाकिनी के प्रभाव से कारामुक्त कमलाकांत अचा- नक अपने को कविता- कुटीर में पाते हैं जहाँ 'श्यामालता-कहीं सांख्य, कहों योग-कहीं देवयानी के नूतन रचित पत्र' बिखरे पड़े हैं। यह 'श्यामालता' और 'देवयानी' स्वयं जगमोहन सिंह की ही रचनाएँ हैं और सांख्य सूत्रों का आर्या छंदों में अनुवाद भी उन्हीं का किया है। अस्तु, कमलाकांत का कविता - कुटीर जगमोहन सिंह का ही कविता-कुटीर है। इसी प्रकार श्यामसुंदर भी कविता-कुटीर में रहते और कविता करते हैं । श्यामा के कथनानुसार श्यामसुंदर अपने एक प्राचीन मित्र का कवित्त नित्य रटते रहते थे। वह कवित्त भारतेन्दु हरिश्चंद्र का था जो कवि जगमोहन सिंह के एक प्राचीन मित्र थे। फिर श्यामा को पत्र लिखते हुए श्यामसुंदर ने अपने एक प्रवीण मित्र के दो दोहे उद्धृत किए हैं । ये दोहे भारतेन्दु हरिश्चंद्र के 'प्रेम सरोवर' से लिए गए हैं । अस्तु, प्राचीन मित्र और प्रवीण मित्र के रूप में भारतेन्दु हरिश्चंद्र का उल्लेख श्यामसुंदर की कवि जगमोहन सिंह से एकरूपता प्रमाणित करता है। श्री ब्रजरत्नदास ने भी 'श्यामास्वप्न' के सम्बंध में लिखा है:

कुछ ऐसा ज्ञात होता है कि ठाकुर साहब ने कुछ अपनी बीती इसमें कही है।"

(भारतेन्दु-मंडल प्रथम संस्करण पृ०६२)

'श्यामा सरोजनी' के पश्चात् कवि की किसी अन्य रचना का प्रका. शन नहीं हुआ । जान पड़ता है कि प्रेम के उल्लास और फिर निराशा के वेग में उन्होंने डेढ़-दो वर्षों में ही तीन-चार रचनाएँ कर डालीं फिर आवेश कम होने पर वे शिथिल पड़ गए। अंतिम रचना वे 'जब कभी' नाम से लिखते रहे, इसमें जब जैसी तरंग आई कुछ लिख लिया करते