सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १३ )

थे। यह गद्य-पद्यमय रचना अपूर्ण और अप्रकाशित है। कविताएँ और समस्यापूर्तियाँ भी इन्होंने की हैं ।

ठाकुर जगमोहन सिंह स्वतंत्र प्रकृति के एक प्रेमी कवि थे। इन्होंने केवल प्रकृति-वर्णन और शृंगाररस-पूर्ण रचना ही की । कालिदास के वे विशेष प्रेमी थे और उनकी तीन रचनाओं का उन्होंने हिंदी अनुवाद किया । बिहारी के दोहों और भारतेन्दु की रचनाओं पर भी वे मुग्ध रहते थे । भारतेन्दु के 'कविवचन सुधा' और 'हरिश्चंद चंद्रिका' के वे प्रवीण पाठक थे । 'कविवचन-सुधा' के १५ मई सन् १८७४ ई० के अंक में कार्तिकप्रसाद खत्री लिखित 'रेल का विकट खेल' एकांकी नाटक प्रकाशित हुआ था, 'श्यामास्वप्न' में उसके नांदी पाठ का सवैया उद्धत किया गया है।

अगिनि वायु जल पृथवी नभ इन तत्वों का ही मेला है ।
इच्छा कर्म सँजोगी इनजिन गारड आप अकेला है।
जीव लादि सब खींचत डोलत तन इसटेशन झेला है ।
जयति अपूरब कारीगर जिन जगत रेल को रेला है।

(पृ० २०२)
 

इसी प्रकार हरिश्चंद्र चंद्रिका' के भाद्रपद शुक्ल १ सं० १९३७ के अंक में पंच प्रपंच' शीर्षक स्तम्भ में कस्साई, कबूतर. और बाज़ का संवाद इस प्रकार प्रकाशित हुआ थाः

बाज-अबे कस्साई वाले . जल्दी हलाल करता है कि एक झपट्टा तुझ- पर भी . वल्लाह ऐसी चंगुल मारूँगा कि मगज बाहर निकल आवैगा

कस्साई-अभी मियाँ शहबाज खाँ अभी .

कबूतर- "है इत लाल कपोत व्रत कठिन प्रीति की चाल ।

मुख ते आहि न भाषिहैं निज सुख करहु हलाल ।"


१–भारतेन्दु मंडल पृ० ९१