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पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/१५३

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श्यामास्वप्न

बस हश ! हाँ तो फिर मैंने गजराज महराज को नमस्कार किया और उस (वह) फाटक खोलने की प्रार्थना की , लोभी पशु एक पसर धान के लालच में झट दतूसर फाटक पर लगा ही तो दिया (विश्वास न हो तो कर्पूर तिलक का वृत्तांत हितोपदेश में देख लो) फट् से फाटक फट पड़ा खुल गया . दूरबीन लगाने की भी आव- श्यकता न पड़ी बिना इस यंत्र के उस पार का सब कुछ उघर गया . फाटक तो खुलाहो था-भगवती भागीरथी गंगा की भी धार निकल पड़ी अब तो ऐरावत जी की नानी सी मर गई . कलकत्ता के निकट की तो बात है . भगीरथ कई सहस्र वर्षों तक तप करके पाए इधर केवल 'गं" बीज के जप मात्र से शीघ्र ही निकल पड़ी-ऐरावत लोट गया- स्नान किया हाथियों का मन जल में बहुत रमता है—किनारे की सब कमलिनी क्रम से उखाड़ उखाड़ कौर कर गए ऐसा जान पड़ा मानों

"चित्रद्विपा पनवनावतीर्णाः
करेणु भिर्दत्त मृणालभंगाः"

गंगा की धार फाटक के आर पार बह गई . मैंने तो जाना कि बस स्टेशन भी बहा ले जायगी पर मेरे भाग्य से बच गया . बीच धार में शेष निकला तब तक भूमि भार सम्हारने की एवजी कूर्म को दे आया -शेष पर भगवान जगन्मोहन विष्णु सोए थे . लक्ष्मी जी पाव पलोटती थी-नाभिकमल से मृगाल निकला-फिर कमल का फूल हो कमल का ध्यान करके देखा तो उसी जलज में से जलजासन निकले–चारों वेद पाठ करते-पर मधुकैटभ दैत्यों ने इनके भी दाँत खट्ट किये . ब्रह्मा भागे दैत्यों ने पीछा किया जोतसी लोग सायत विचारने लगे पर ज्योतिष का उनको कुछ बोध थोड़ा ही था . अगहन की सायत सावन भादों ही में धरी शुक्र का भी उदय नहीं हुआ था, अगस्ति का भी उदय न था-पंथ का जल भी नहीं सूखा था- देत्यों ने ब्रह्मा का ऐसा पीछा किया जैसे बालि ने मायावी का किया था- गया-