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श्यामास्वप्न

"टरत नं पलभर' नैन हियो निज धाम बनायो
बहुरि छुड़ायो खान पान. प्रानन अपनायो
श्री मंगल परसाद तुही जग में सुखधामा
और - सकल जंजाल तोहि बलि जाऊँ श्यामा,
पावस गइ झलकी शरद खंजन आगम कीन्ह
खंजन गंजन लोचनी श्यामा दरस न दीन्ह
"श्यामा दरस न दीन्ह चन्द वा मुख सम भायो
गए बहुत दिन बीत शरद पूनो चलि आयो
श्रीमंगल परसाद जरै जियरा बिरहा बस
नीर नैन ते झरत झर झरना जिमि पावस.

लावनी

मिलेंगे प्यारी तुमसे कभी यह श्रास लगाए रहते हैं।
यहाँ वहाँ या और कहीं बस तलफ तलफ दुख सहते हैं ।
किए करार अपार सार कुछ मिला न फल तुझसे प्यारी ।
हार मान कर बैठे बस अब भई रैन मुझको भारी ॥
कही बहुत कुछ सही पीर हम हाय घीर अब ना श्रावै।
सिसक सिसक कै आह आह कर सजल नैन दुख तन तावै ॥
कल न परै पल एक कलपते श्राह आह करते बीते ।
रैन द्यौसहू चैन छिना नहिं सकल मोद मन ते रोते ॥
मारो वा राखो मुहि प्यारी बार बार यह कहते हैं।
यहाँ वहाँ या और कहीं बस तलफ तलफ दुख सहते हैं ।
बहुत कहा समुझाया तुझको कही न मानी सो तूने ।
याद करो बस बात पुरानी, भए नए दुःख ए दूने ।
घाट बाट की सुरति न प्रावति कहा कहाँ तेरी बतियाँ।
रीझि खीझिकै कंठ लगी तव दरक जातं सुधि कै छतियाँ ॥