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पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/१९५

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श्यामास्वप्न

दहार में उसे ले गया न जाने वहाँ क्या करेगा . मैंने जाना कि कहीं काली दह में शेषनाग न कच्चा चबा जाय -फिर मच्छ कच्छ कुछ भी न कर सकेंगे-गरुड़ महाराज को हुक्म दिया कि तुम जाव उसका पता लगावो--देखना कालीनाग न खा जाय--वह तो केवल गरुड़ से डरते थे-गरुड़ उन्हें भी सर्व स्वाहा कर डालते- उनके सन्मुख वे भी चे पों नहीं कर सकते , पूछ दबा के छू हो जाते हैं . गरुड़ जी उड़े . मच्छ का पीछा किया पर कच्छ तो अब थल में रेंगता था और बाला भी बिचारी अधमरी सी उसी के पीछे घिसलती जाती थी . ने तनिक भी दया न देखी . दइमारा पाव पियादे ले गया इधर उधर सहाय के लिए देखती जाती थी-जैसे कसाई के हाथ की गिरवाँ से गसी गैय्या कातर नैनों से पीछे देखती जाती हो . बहुत दूर तक ऐसे ही ले गए किसी ने जाना भी नहीं-चू भी किसी ने न किया-चलते चलते आखें मिल मिलाने लगी -मक्छ तो अपने काम में तत्पर था . झट एक की डोली में घुस गया-नील सागर के पार जाकर एक नवीन नगर देखा-वहाँ पहुँच कर तीर में डोली धरी गई . मच्छ कूद पड़ा और बाला को उगल दिया , फिर तो गुफा में सब लोग समा गए . मच्छ लोप हो गया-लीला समाप्त हो गई-दूर से गाना सुन पड़ा-- कोई न कोई तो गा ही रहा होगा .

"काले परे कोस चलि चलि थक गए पांय
सुख के कसाले परे ताले पर नसके ।
रोय रोय नैनन में हाले परे जाले परे
मदन के पाले परे प्रान पर बस के
हरीचंद अंगहु हवाले परे रोगन के
सोगन के भाले परे तन
पगन में छाले परे नांघिबे को नाले परे
लाल लाले परे रावरे दरस के।"-