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श्यामास्वप्न

सवैया

बसिकै इक गाँव में नाव चढ़े हम प्रेम पयोनिधि माहि महा

बहु भाँति निरास चटानन बीच तुफानन सो बचि के न रहा ।

जगमोहन बावरी केहूँ सुनो विनती इतनी हठ मान गहा

"सब छोड़ि तुम्है हम पायो अहो तुम छोड़ि हमैं कहो पायो कहा॥६॥

परिपैयाँ गुसैयाँ सरीस करी विनती बहु जोर के हाथ गहा

तुमहूँ पहले बहु बात दई “नहिं छोड़हिंगी हम कैहूकहा ।

जगमोहन हू तिमि ध्याय तुम्हैं परतीति करी पतिया विनहा

"सब छोड़ि तुम्हैं हम पायो अहो तुम छोड़ि हमैं कहो पायो कहा"।।७।।

कुलकानि तजी गुरु लोगन में बसिकै सब बैन कुन सहा

परलोक नसाय सबै विधि सों उनमत्त को मारग जान गहा ।

जगमोहन धोय हया निज हाथन या तन पाल्यौ है प्रेम महा

"सब छोड़ि तुम्हैं हम पायो अहो तुम छोड़ि हमैं कहो पायो कहा"।।८।।

लग्वि लीन्हीं तिहारी पिरीति सुनो मनकी मनमें जु रहे धर के

छिनको न निवाह कन्यौ तनिको कुलवंश औ जात कहा कर के।

मिलि भेटिबे की कछू बात नहीं मोहन के मन को दरक

निशि वे बतियाँ जब याद पर तन कूल करेजन में करके ॥६॥

श्यामल श्याम लखात चहूं नभमंडल में वग पाँति सुहाई

दूब हरी हरी गैलै गई मूदि हा हा हरी सुधि हू बिसराई ।

त्यो जगमोहन पीरी परी बिरहानल ने सब देह जराई

तेरे बिना घन घेरि घटा तरवार लै विजु अटा चढ़ि घाई ॥१०॥

(मयूर को देख)

दोहा

नीलकंठ कलरव करहु जाय पियारी गेह ।
तनिक सँदेस सुनाइए होय लहलही देह ॥११॥