करु याद अहो टुक वा दिन की जब छैल उतै तुव बाँह गही।
भुज मेलि परस्पर कंठ कपोल कपोल अमोल लुभाय लही ।।
बिरलौ न कियो कछु हास विलास सुमंद हँसी बतराय रही।
जगमोहन हीय फटै दरकै सुधि श्रावै जबै सँग तेरे सही ॥३६॥
दोहा
बीती निशि इक छनिक मैं तनिक न जान्यौ कोय ।
कैसे सुख सों बहु प्रिये गए दिवस दुख खोय ॥४०॥
डारि गरें मृदुवल्लरी बाँहन किय रसबात ।
चूम्यौ अघर मिलाय कै अधर मंद मुसकात ।।४।।
सो सुधि जब अावत अहो दरक जात मो हीय ।
जौं सुधि तुहिं आवै कहूं बचै न तौ तुअ जीय ॥४२॥
जौं कविता सरिता सरिस शक्ति धरै तो मोहि ।
तो सों मिलन न कठिन कछु यही रह्यौ मग जोहि ॥४३॥
जौं ईसुर हो तो कहूँ सुनतो करुना बैन ।
विरह विलाप न सहज कछु तो मुहिं देतो चैन ॥४४॥
सुनिए विधिना विनय वहु विरह बिलाप बहोर ।
प्यारे जो जगदीन संग श्यामा मिलवहु जोर ॥४५॥
सवैया
श्यामा बिनै सुन नेह तुहीं मम जीवन दूसरी और न कोऊ ।
काहे तज्यौ मुहि का अपराधन दीन्हो बिचार बिना दुख सोऊ ।।
सो जो कहो केहि नीत की रीति पिरीति की चाल बिचारिये दोऊ ।
तेरे सुनाम की माला जपें जगमोहन होनी भई सुतो होऊ ॥४६॥
कौन कहैगो हमें "पिय प्यारे सुनो मनमोहन ए बतियाँ ।
तुम आवो अचानक गेह तहाँ तुहि लाय हौं अानंद सो छतियाँ ।
पल पावड़े डारि रहौंगी डटी डेवढ़ी डर छोड़ि अधीरतियाँ ।
पुनि मूदहुंगी निज अंक में बाहु पसारिके" ऐसी लिखी पतियाँ ॥४७॥