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श्यामास्वप्न


अब कौन लिखेगो ‘बिचारो तुम्हीं केहि भाँतिन चुम्बन दीजिए हो।
पतियाँ में लपेट कहौं किमि भेजिहौं सोचहु तो फिर खीझिए हो।
दृग सों हग लोल लगाय हौ जों मनभावन तो मन लीजिए हो।
जगमोहन कौन भरोसे रहे उलटो सब कीन्हों सुचीन्हिए हो॥४८॥
नेह की डौड़ी फिरी जग में सु रही तिल सी न थली तिहुँ लोकन।
लोकन लोक बही जु बयार औ लोगहू लागे विचारन सोचन॥
गाँव तें गाँव बढ़ी पुरते पुर लाँघि नदी नरवा घर को तन।
फैली पहार पहार ते फेर नदीसहू पार गई दुखमोचन॥४९॥
ऐसी कभू न भई नहिं होयगी कीन्हो कहू यह देस न ऐसो।
जो परतीति के सिंधु में पैठि गयो बहु बूड़ निरासन कैसो॥
जो जगमोहन कैसे कहै वह सुंदर श्याम सनेह को जैसो।
जैसो धुजा फहरात चहूं सुइ काढ़यौ पताका पिरीत को तैसो॥५०॥
कौन सी बातन याद करैं हम कौन कथा कहिए दिल खोली।
कौन मिलै जग साथी हमैं दिलदार बुझावनहार अमोली॥
बोले सभी मधुरे सुथरे सुघरे बच आन अली दुख झोली।
ऐसो मिलो जगमोहन कोउ न जो पै मिलावतो तोहि सो भोली॥५१॥
तुअ गौन की याद जबै जिय आवत पावत प्रान कलेस अली।
अँसुआ झर सावन भादौं मनौ हरियावत नेह जवा की वली॥
अँग सूखि जवास लौ पीरो पय्यो सु हवास गयो तन त्यागि भली।
जगमोहन जीवन केर अँदेस बिना तुअ प्रात को कुंदकली॥४२॥
कितनो बरज्यौ यह जीवहि हाय गहैं वह पंथ नसावहुगे।
तिल लौं निज टेक तजी न कहूं मरजी न भई पछतावहुगे॥
उनको वह मारग सूधो लगै हठ नीर लौ जौं दुख पावहुगे।
सहनोई परो सहते दुखवा जगमोहनें केंहूँ जिवावहुगे॥५३॥
कितनी सहिए रहिए गहि मौन भयो तन पिंजर लो दुबरो।
अँखियाँ अँसुआँ झर लाय रहीं कहुँ धार अपार रुकी न जरो॥