पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/२१

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श्यामा रीतिकालीन नायिका की भाँति काम-कला-प्रवीणा और रति- अभिसार-निपुणा है । चौदह वर्ष की वथ में ही उसने पूरी चतुराई सीख ली है । जिस दिन पहली बार उसके हृदय में श्यामसुंदर का प्रेम अंकुरित हुआ था और उसकी चेष्टाओं से वृदा ने सब कुछ जान लिया था, उस समय चतुर्दश वर्षीया श्यामा ने जिस चातुर्य का अभिनय किया उसे सुन कमलाकांत भी अपने को न रोक सके, टोक ही दिया किः

वाहरी श्यामा १४ वर्ष में जब तुम इतनी चतुर थीं तब आगे न जाने क्या हुआ होगा . (पृ० ५४ )

चातुर्य के साथ उसमें सौन्दर्य भी रीतिकालीन नायिका के ही तुल्य है। कवि ने श्यामा का जो नख-शिख वर्णन किया है वह प्राचीन रीति- कालीन कवियों की छाया लेकर ही लिखा गया है। बंकिमचंद्र चटर्जी ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास 'दुर्गेशनंदिनी' में आसमानी का रूप-वर्णन करने के पूर्व मंगलाचरण करते हुए लिखा थाः

माँ ( सरस्वती ) तुम्हारे दो रूप हैं, जिस रूप से तुम कालिदास के लिए वरप्रद हुई थी, जिस प्रकृति के प्रभाव से रघुवंश, कुमारसम्भव, मेघदूत, शकुंतला निर्मित हुए थे, जिस प्रकृति का ध्यान करके बाल्मीकि ने रामायण, भवभूति ने उत्तर चरित और भारवि ने किरातार्जुनीय लिखा था, उस रूप से मेरे कंधे पर बैठ कर पीड़ा न देना; जिस मूर्ति का ध्यान कर श्रीहर्ष ने नैषध-चरित लिखा था, जिस प्रकृति के प्रसाद से भारतचंद्र ने विद्या का अपूर्व रूप वर्णन करके बंग देश का मन मोह लिया है। जिसके प्रसाद से दाशरथि राय का जन्म हुआ, जिस मूर्ति से आज भी 'बटतला' को प्रकाशित कर रही हो, उस मूर्ति से एक बार मेरे कंधों पर बैठो, मैं आसमानी के रूप का वर्णन करूं ।

ऐसा जान पड़ता है कि माँ भारती की जिस मूर्ति का आवाहन कर ,