पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(२१)

कैसे कलधौत के सरोरुह सवारे कहि
जैसे रूप नट के बटा से छबि ढारे हैं।
कैसे रूप नट के बटा से छबि ढारे कंहु.
जैसे काम भूपति के उलटे नगारे हैं।
कैसे काम भूपति के उलटे नगारे कहु
जैसे प्राणप्यारी ऊँचे उरज तिहारे हैं।।
संपुट सरोज कैधों सोभा के सरोवर में,
लसत सिंगार. के निसान अधिकारी के।
कवि पजनेस लोल चित्त बिच चोरिबे को
चोर इक ठौर नारि ग्रीव वरकारी के।
मंदिर मनोज के ललित कुंभ कंचन के
कलित फलित कैधों श्रीफल बिहारी के।
उरज उठौना, चक्रवाकन के छौना कैधों
मदन खिलौना ये सलौना प्रानप्यारी के॥

श्यामा जैसी रीतिकालीन नायिका की सखी वृन्दा तो उससे भी बढ़ी चढ़ी है । कवि ने उसका जो वर्णन किया है वह इस प्रकार है:

सुमार्ग से कुमार्ग पहुँचाने की मशाल-दुष्ट पथ की परिचारिका, विलासियों की सहचारिका-द्रव्य के लिए तन और मन की हारिका- सुमति वाली बालाओं के मन में कुमति की कारिका—'बुढ़ियाबखान' सी पुस्तकों की सारिका-अपने भक्तों पर जीवन की हारिका-अच्छे अच्छे कुलों का चौका लगाने वाली-अभिसारिकाओं की नौका-ऐसी प्रगल्भ मानौ डौका-मदन पाठशाला की बालाओं को परकीयत्व धर्मशास्त्र सिखाने की परिभाषा-'परिपतिसंगम' रूप को कन्दर्प व्याकरण से सिद्ध कराने वाली-रति वेदांत की परिपाटी सिखाने वाली-सुमति-लोप-विधायक सूत्र को कंठ कराने वाली-कुपंथ सरिता की सेतु-मदन-