का आभास उपयुक्त उद्धरण में मिलेगा। इसी प्रकार 'श्यामास्वप्न' में रेल की चर्चा भी युग का प्रभाव प्रकट करता है। इस प्रकार 'श्यामास्वप्न में स्वप्न रूप में उन्नीसवीं शताब्दी के वैज्ञानिक कुतूहल:- जनक तथ्यों के साथ प्राचीन पौराणिक कुतूहलजनक बातों का समावेश कर कुछ अद्भुत बातें भी लिख दी गई हैं जिससे उपन्यास का कथानक जटिल, असंगत और अयथार्थ हो गया है ।
इस रीतिकालीन वातावरण के चित्रों से पूर्ण जटिल और असंगत कथा-वस्तु तथा उन्मत्त काव्य से युक्त 'श्यामास्वप्न' को उपन्यास कहना युक्तिसंगत नहीं जान पड़ता यद्यपि लेखक ने स्वयं इसे an original novel- एक मौलिक उपन्यास अथवा प्रबंध कल्पना लिखा है। साहित्य-रूप. की दृष्टि से इसे प्राचीनकालीन कथा, आख्यायिका और चम्पू काव्य की श्रेणी में रखना अधिक समीचीन होगा, आधुनिक युग के उपन्यासों में इसे स्थान नहीं मिल सकता; क्योंकि उपन्यास आधुनिक युग की सामान्य जनता की वस्तु है जिसे मुद्रण यंत्रों ने सुलभ बना दिया है । वह सामंत वर्ग के अवकाश काल के मनोविनोद की सामग्री नहीं जो राज्याश्रित कवियों द्वारा उपस्थित किया जाता था । अस्तु, 'श्यामास्वप्न एक चम्पू काव्य है जिनमें उपक्रम और उपसंहार के रूप में एक स्वप्न की भूमिका दे दी गई है।
इस चम्पू काव्य में गद्य के बीच बीच में काव्य पर्याप्त परिमाण में उपलब्ध हैं। कवि ने अपनी पद्य-रचना तो थोड़ी ही दी है, अन्य कवियों-देव, बिहारी, तुलसीदास, पद्माकर, पजनेस, रसखान, श्रीपति, बलभद्र, गिरिधर दास और भारतेन्दु हरिश्चंद्र की रचनाएँ पर्याप्त मात्रा में दी हैं। इनमें भारतेन्दु हरिश्चंद्र की रचनाएँ तो बहुत अधिक दी गई हैं। पद्यों में ही नहीं गद्य में भी कहीं कहीं भारतेन्दु के छंदों का अनुवाद ही दे दिया गया है । एक उदाहरण देखिएः n