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पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/२९

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( २६ )

एक दिन वे अचानक मेरे द्वारे आन कढ़े. मैं अपनी अटा पै ठाढ़ी रही-वे मो तन देख हँस पड़े, पर मैं लाज के मारे भौन के भीतर भाज गई. उसी दिन से इन कुचाइन चवाइयों ने मिलि के चौचंद पारा.

(पृष्ठ ६० )
 

यह गद्यांश इस सवैया का रूपांतर मात्र है :

जा दिन लाल बजावत बेनु अचानक आय कढ़े मम द्वारे ।
हौं रही ठाढ़ी अटा अपने लखि कै हँसे मो तन नंद-दुलारे ।
लाजि कै भाजि गई "हरिचंद" हौं भौन के भीतर भीति के मारे।
ताही दिना ते चवाइनहूँ मिलि हाय चवाय के चौचंद पारे ।

इस अनुवाद के पीछे कवि ने गद्य में भी ब्रजभाषा लिख मारा है; यथा-आन कढ़े अटा पै ठाढ़ी रही ; मो तन (मेरी ओर); भौन के भीतर भाज गई; कुचाइन चवाइयों ने मिलि के चौधुंद पारा; इत्यादि

हिंदी कवियों के अतिरिक्त संस्कृत कवियों-विशेषकर कालिदास और भवभूति के छंदों का उपयोग भी इस ग्रंथ में पर्याप्त किया गया है । मेघदूत के मंदाक्रांता तो लेखक ने उद्धृत किए ही हैं दंडकारण्य के वर्णन में भवभूति के उत्तरचरित के दंडकारण्य की छाया भी स्पष्ट है । जब कवि लिखता है:

मैं कहाँ तक इस सुंदर देश का वर्णन करूँ . कहीं कहीं कोमल कोमल श्याम-कहीं भयंकर और रूखे सूखे वन -कहीं झरनों का झंकार, कहीं तीर्थ के आकार-मनोहर मनोहर दिखाते हैं . कहीं कोई बनैला जंतु प्रचंड स्वर से बोलता है-कहीं कोई मौन ही होकर डोलता है-कहीं विहंगमों का रोर कहीं निप्कूजित निकुंजों के छोर- कहीं नाचते हुए मोर-कहीं विचित्र तमचोर-कहीं स्वेच्छाहार विहार करके सोते हुए अजगर जिनका गम्भीर घोष कंदरों में प्रतिध्वनित हो रहा है-कहीं भुजगों की स्वास से अग्नि की ज्वाला प्रदीप्त होती है-