पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/४१

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श्री श्यामा पातु

श्यामास्वप्न

अर्थात् गद्य प्रधान, चार खंडों में एक कल्पना .

"तन तरु चढ़ि रस चूसि सब फूली फली न रोति ।
पिय अकास बेली भई तुअ निरमूलक प्रीते ॥"
"है इत लाल कपोत व्रत कठिन प्रीति की चाल ।
मुख से अाह न भाषि हैं निज सुख करहु हलाल ||"

( हरिश्चंद्र )
 

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"यदि वांछसि परपदमारोढुं मैत्री परिहर सह वनिताभिः ।
मुह्यति मुनिरपि विषयासगाच्चित्रा भवति हि मनसो वृत्तिः ॥"

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ऋतु-संहार, मेघदूत, कुमारसंभव, देवयानी, श्यामालता,

प्रेमसम्पत्तिलता, सज्जनाष्टक इत्यादि काव्यों

के अनुवादक और प्रणेता

विजयराघवगढ़ाधिपात्मज

श्री ठाकुर जगन्मोहन सिंह, एम. आर. ए. एस्.

ग्रेट ब्रिटेन और भाइरलैंड विरचित