पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/४८

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श्यामास्वप्न

किसी ने अपनी एकांत कोठरी की खिड़की पर दृष्टि नहीं डाली . इस भुइहरे के एक कोने में प्यार पर बैठा प्रथम किरण की आशा लगाये पहरा दे रहा था . छै दीर्घ मास उसी निर्जन कोठरी में सिसक-सिसक के बिताये, समय बीता परंतु प्रत्येक दिवस और घंटों के साथ जो दुःख के बोझ के मारे मंद मंद पग धरते थे सब नित्य आशा का अंत हुआ, उसकी सब उमंगों को उस बंदीगृह समुद्र से निकलने के लिये मोक्ष की कोई नौका न दिखी • हाँ--छै महीने इसी आशा से उस नरक में काटे कि कभी तो कोई न्यायाधीश न्याय करेगा बहुतेरा रोया-गाया- प्रार्थना की, पर सब व्यर्थ, उस आधी रात सी खोह की अंधियारी में भी अपने विक्षिप्त चित्त पर परदा डालने के लिये नेत्र मूंद लेता तो भी वे मनोरथ हज़ारों भाँति के भयानक रूप देखते थे कि उसने अपने (नी) कोठरी के अंधकार से डर कर प्रकाश देखने की इच्छा की. इस युवा का अपराध क्या था ? इसने प्रेम किया था अद्यापि प्रेम करता था 'एक उत्तम कुल की स्त्री-इसको यह मोह और उन्मत्तता से प्रेम करता था . आह प्यारी तेरी मूर्ति भी इस कार'गार के अंधकार में कभी-कभी मुस- किरा जाती है --उस तारा की भांति जो मेघ के बीच में चमक कर समुद्र के कोप में पड़े हुये निराश मल्लाहों को प्रसन्न करती है .

हा, तुझ पर वह अत्यंत प्रेम रखता था, ऐसे चाव से चाहता था . जहाँ तक मनुष्य की शक्ति है --क्या तेरा कोमल जी उसके उत्तर में न धड़कता होगा?

पहिले जुगों के राजों, लोगों, और न्यायकारियों के (की) दृष्टि में अपने से ऊँची जाति का आकांक्षी और विशेष कर ब्राह्मणियों पर नेत्र लगाने वाला पापी और हत्यारा गिना जाता था-वह कैसा ही सत्पुरुष और ऊँचे कुल का न हो ब्राह्मण की कन्या से विवाह करना चोर नरक में पड़ना या अग्नि के मुख में जलना था . मनु के समय में ब्राह्मणों की . कैसी उन्नति और अनाथ शूद्रों की कैसी दुर्दशा थी नीचे लिखे हुए