पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/४९

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श्यामास्वप्न

श्लोकों से प्रकट होगी . एक तो आकाश और दूसरा पातालवत् था . एक तो दूध दूसरा पानी, -एक तो सोना दूसरा पीतल--एक तो स्वतंत्र दूसरा कैसा परतंत्र और आजीवान्त सभों का दास, एक तो पारस दूसरा पापाण--एक तो आम, दूसरा बबर-रक तो सजीव दूसरा जड़, निर्जीव,केवल वृक्ष की भांति उगने, फूलने, फलने और मुरझाने के लिये था.वाहरे समय ! ब्राह्मणों ही के कर में कलम था मनमाना जो आया घिस दिया राजाओं पर ऐसा बल रखते थे कि वे इनके मोम की नाक थे, या काष्ठ पुत्तलिका जिसकी डोर उनके हाथ में थी-

शूद्रो गुप्तमगुप्तं वा व्दैजांत वर्णमावसन् ।।
अगुप्तमङ्गं सर्वस्वैर्गुप्तं सर्वेण हीयते ।। ३७४।८

अर्थ । यदि शूद्र किसी द्विज की स्त्री से गमन करैगा चाहै वह गृह में रक्षित हो वा अरक्षित इस प्रकार दण्ड्य होगा--यदि अर- क्षित हो तो उसका वह अंग काट डाला जायगा और धन भी सब ले लिया जायगा--यदि रक्षित हो तो वह सब से हीन कर दिया जायगा .

उभावपि तु तावेव ब्रह्मण्या गुप्तया सह ॥
विप्लुतौ शूद्रवद्दराड्यौ दग्धव्यौ वा कटामिना ॥३७७.८

यदि वे दोनौं (वैश्य और शूद्र ) ब्राह्मणी-गमन करे जो रक्षिता है तो शूद्रवत् दंड होगा वा सूखे भुसे के ( की) आग में जला दिया जायगा--

मौण्ड्यं प्राणान्तिको दण्डो ब्राह्मणस्य विधीयते ॥
इतरेषान्तु वर्णानां दण्डः प्राणान्तिको भवेत् ॥३७६।८
न जातु ब्राह्मणं हन्यात्सर्वपापेष्वपि स्थितम् ॥
राष्ट्रादेनम्बहिष्कुर्यात्समग्रधनमक्षतम् ॥३८०|८
न ब्राह्मणवाद्भूयानधर्मो विद्यते भुवि ।।
तस्मादस्य वधं राजा मनसापि न चिन्तयेत् ॥३८१।८