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श्यामास्वप्न


ले.” ऐसा कहते जेलर सिर से पैर तक कंपता हांथ में दिया को उस ओर उठाया जिस भीत के मूल में इस युवा की सेज थी और बोला “भाई बचाना देखो यह मंत्र अभी तक लिखा है” युवा ने नेत्र उठाकर देखा पर जेलर ने डरकर कहा “नहीं भाई इसे पढ़ना मत नहीं तो इसके बाचते ही वह प्रेत अपनी भयावनी मूर्ति ले आ खड़ा होगा क्यों कि यह आकर्षण मंत्र है!”.

इतना कह जेलर ने दीप हटा लिया और आप भी कुछ हटा; बोला “ले भाई अब मैं जाता हूँँ कोई आध घंटे के बीच में राजदूत आ पहुँचेंगे” इतना कह जेलर दीप को ले चला गया और वह बिचारा युवा फिर भी अंधकार में डूब गया.

एक बार फिर यह अकेला हुआ और बोला “उसने अच्छा किया जो इस पर ध्यान नहीं दिया ईश्वर मुझे भी इस लोभ और मोह से बचावे― पर हा प्यारी! प्राणप्यारी क्या तू जानती है कि मैं तेरे लिये यह सब न करूँगा? देख इस आधी घड़ी में मेरा चित्त कैसा बदल गया इस भयदायक कथा को जो मेरे कान में घंटे की भाँति बजती और जिसकी झांई मेरे हृदय में बोलती है, न सुनता तो अच्छा होता, मेरे चित्तमें कैसे कैसे संकल्प उठते हैं, वो मुझ को ऐसे भयानक कर्म करना सिखाते हैं कि जिनके निमित्त अंत में निरंतर नरक की अग्नि में बास करना पड़ेगा, हा प्रिये! तुझे छाती से लगाना, तेरी अमृत मई वाणी सुनना, तेरी दया दृष्टि की छाया में विश्राम करना और तेरे धड़कते हुए हृदय को देखना मेरे लिये बैकुंठ था―पर देख इस अभिमानी कपटनाग और न्यायाधीश से बैर भंजाना जिसने विचार के पूर्व ही यहाँ डाला―यह बैर लेना जो केवल तेरे प्रेम ही से घटकर है वह अविचल प्रेम और वह वैर जो तेरे पिता से लेना है यह भी मेरे लिये बैकुंठ है―हाँँ प्यारी केवल तेरी प्रीति के लिये मैं बैकुंठ को भी कुंठ समझता हूँ और वैर भंजाने के लिये नरक का निरंतर बास भी स्वीकार करता हूँ",