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श्यामास्वप्न

वह नहीं जानती कि तू इस कारागार में है, उसे केवल तेरा विदेशगमन ही ज्ञात है और फिर मनुष्य इतने दिनों तक सत्यप्रेम नहीं निवाहता"

कमलाकांत ने कहा “यदि तुझमें शक्ति हो तो बुला दे तब मैं मानूंगा बुलाने की शक्ति ही नहीं तो व्यर्थ क्यों बकती है". डाइन बोली "तो मैं इसका प्रमाण क्यौं दूँ जब तुम विश्वास ही नहीं करते".

कमलाकांत ने कहा “सुन, यदि तू इसका प्रमाण दे कि वह पक्की नहीं तो मैं सर्वतः तेरा हो जाऊँ" डाइन ने कहा“हाथ मार, देख-फिर न बदलना मैं दिखाती हूँ".

युवा ने हाथ मारा और डाइन खिरकी की ओर अपना दाहिना हाथ पसार के यों कहने लगी--

"चल बे चल अब ल्याव बुलाय
जो यह मंत्र फुरै मम
जो कुछ शक्ति होय गुरु दीन्ह
र्जी सेवा वाकी मैं कीन्ह
तो श्रावे वह सेन समेत
आयवा जैसे होय अचेत ।"

"छुः छुः छुः दुहाई वीर भैरों की, आव-आव-आव दौड़-झौड़, छुः छुः छू"

इतने में एक मेघ घुमड़ आया और खिड़की को ढाँक लिया, भीतर मेघ घुस आया- -मैंने प्रार्थना की और कहा--

"सन्तप्तानां त्वमसि शरणं तत्पयोदः प्रियायाः
संदेशं मे हर धनपतिक्रोधविश्लेषितस्य ।
गन्तव्या ते वसतिरलका नाम यक्षेश्वराणां
बाह्योद्यानस्थित हरशिरश्चन्द्रिकाधौत हा ॥

इसके पढ़ते ही सब तिमिर में समा गया, सृष्टि के नूतन विधान का निशान फहराने लगा, "भयौ यथाथित सब संसारू" नील अंबर में