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पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/५९

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श्यामास्वप्न

सुनाऊँगा वह भी मेरे लिये क्या चार आँसू न गिरावेगी? तो बस अब उसी के पास चलँ"-

ऐसा सोचता हुआ वह अपनी सेज पर ज्यौंही पौढ़ा डाइन आ गई और वह इसको फिर देख हक्का बक्का हो गया. कहने लगा “नहीं, नहीं यह स्वप्न नहीं प्रत्यक्ष है" इसी को फिर फिर कहता रहा, डाइन बोली “यह प्रत्यक्ष है क्या तू भूल गया . इस प्रत्यक्ष के प्रत्येक अक्षर ऐसे सत्य हैं जैसा कि वह सूर्य-इसमें तुझै अपना परलोक और भावी सुख सब मेरे हाथ बेच देना पड़ेगा. पर अभी कुछ बिलंब नहीं यदि चाहो तो छूट सक्ते हो पर फिर उसी कारागार में जाना होगा . अब तेरे होनहार सब तेरे ही हाथ में है जो चाहे कर"

कमलाकांत बोला, "तो अच्छा तू जा मैं तेरी सहायता नहीं चाहता. तेरे हाथ परलोक और सुख कभी देने का नहीं"

डाइन ने उत्तर दिया- "जो ऐसा ही है तो जाती हूँ पर एक बात और सुन–यदि तू मुझे छोड़ता है तो फिर उसी भुंइहरे में जाना होगा- वहाँ से फिर उसी न्यायाधीश के पास वहाँ से फिर सूली पर जाने का मार्ग खुला ही है". कमलाकांत ने कहा "कुछ चिंता नहीं मुझे तुझसे बढ़के और कहीं पवित्र शक्ति पर जिसका प्रभाव सब जानते हैं बड़ा भरोसा है. यदि तू छोड़ देगी तो वह ( आकाश की ओर दिखाकर ) तो नहीं छोड़ेगा-

"है सबसे समरथ्य बड़ो प्रभु मारन हारे त राखनहारो"

जा-जो चाहै कर".

डाइन व्यंगपूर्वक मुसकिराकर बोली "अरे तुच्छ मूर्ख-जड़-वह तेरी प्यारी जो इतने बड़े की बेटी है तुझे मिली जाती है क्या ! कहाँ तू और कहाँ वह ? “कहाँ राजा भोज और कहाँ भुजवा तेली", कहाँ सूर्य और कहाँ काँच, और फिर वह डेढ़ वर्ष तक क्या तेरे लिए बैठी हैं ? -