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पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/७७

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श्यामास्वप्न

भगवान् मदन मथन के मौलि की मालती की सुमन माला, हाला- हलकंठ वाले के काले बालों की विशाल जाला, पाला के पर्वत से निकल कर सहस्र कोसों बहती विष्णु से जगत्व्यापक सागर से मिलती रहती है. इसकी महिमा कौन कह सक्ता है . पद्माकर ने ठीक कहा है--

"जमपुर द्वारे के किवारे लगे तारे कोऊ
हैं न रखवारे ऐसे वन के उजारे हैं।
कहै पदमाकर तिहारे प्रनधारे जेते
करि अघभारे सुरलोक के सिधारे हैं।
सुजन सुखारे करे पुन्य उजियारे अति
पतित कतारे भवसिंधु ते उवारे हैं।
काहू ने न तारे तिन्हैं गंगा तुम तारे श्राजु
जेते तुम तारे तेते नभ में न तारे हैं।"

"लाए भूमिलोक तँ जसूस जवरेई जाय
जाहिर खबर करी पापिन के मित्र की ।
कहै पदमाकर विलोकि जम कही के
विचारो तो करमगति ऐसे अपवित्र की।
जौलौं लगे कागद बिचारन कछुक तौलौं
ताके कानपरी धुनि गंगा के चरित्र की,
वाके सीस ही ते ऐसी गंगाधारा बही जामे
बही बही फिरी बही चित्रहू गुपुत्र की ॥"

"गंगा के चरित्र लखि भाषे जमराज ऐसे
एरे चित्रगुप्त मेरे हुकुम में कान दै।
कहै पदमाकर ए नरकनि मूदि करि
मूदि दरवाजन को तजि यह थान दै।