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श्यामास्वप्न
इस दारुन विपत्ति को स्मरण कर फिर भी सजल नैनों से माता हमारी को दशा देख विलाप करने लगते. फिर गिरस्ती में लोग लगे-कुछ काल के अनन्तर उन्हें एक कन्या और हुई . इसका नाम पत्रिका के अनुसार सुशीला पड़ा सो हे भद्र ! देखो यहीं सत्यवती और सुशीला मेरी दोनों भगिनी सहोदरी हैं और मुझ अभागिन का नाम श्यामा है"- इतना कह चुप हो रही . इस नाम के सुनते ही मेरा करेजा कँप उठा और संज्ञा जाती रही-हाय हाय ! कहता भूमि में गिर पड़ा और स्वप्न- तरंग में डूब गया .
इति प्रथम स्वप्न .
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