सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८
श्यामास्वप्न

इस दारुन विपत्ति को स्मरण कर फिर भी सजल नैनों से माता हमारी को दशा देख विलाप करने लगते. फिर गिरस्ती में लोग लगे-कुछ काल के अनन्तर उन्हें एक कन्या और हुई . इसका नाम पत्रिका के अनुसार सुशीला पड़ा सो हे भद्र ! देखो यहीं सत्यवती और सुशीला मेरी दोनों भगिनी सहोदरी हैं और मुझ अभागिन का नाम श्यामा है"- इतना कह चुप हो रही . इस नाम के सुनते ही मेरा करेजा कँप उठा और संज्ञा जाती रही-हाय हाय ! कहता भूमि में गिर पड़ा और स्वप्न- तरंग में डूब गया .

इति प्रथम स्वप्न .

________