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श्यामास्वप्न

हाँ-एक तो मालती और एक माधवी मेरी सहपाठिनी थीं . उनसे मेरा निरंतर स्नेह बना रहता, और एक दूसरे के घर उठने बैठने उत्सवों में और सहज रीति पर भी आया जाया करती . जब मैं पढ़ लिख चुकी पाठशाला को छोड़ घर बार के काम में तप्तर हुई और मेरे पिता ने मेरे विवाह की चिंता की धनहीन होने के कारन कोई कुलीन ब्राह्मण नहीं मिला और मिला भी तो मुझ दीना का पाणिग्रहण करने को उपस्थित न हुआ . मेरे पिता की चिंता बढ़ी और उनने इस्का उद्योग किया . मेरे पिता यहाँ के विख्यात प्रतिष्ठित परिव्राजक राजकुल के मान्य कार्याध्यक्ष थे . उस कुल का नाम इस देश की पुरानी बुरी परिपाटी के अनुसार कपटनाग था . मैं नहीं जानती इस बड़े कुल का ऐसा बुरा नाम क्यौं पड़ा इसका वृत्तांत्त न तो मैंने कभी पूछने की इच्छा रक्खी और न कभी मेरे पिता ने मुझसे कहा इसी से मुझे नहीं ज्ञात है -पर नाम से कुछ प्रयोजन नहीं . कुल देखना चाहिए . अभी तक पाटलीपुत्र के एक मुख्य नवाब के कुल का नाम "नवाब गदहिया" है . कपटनाग का कुल इस देश में बड़ा मान्य और पूज्य था . इसकी गद्दी पुराने महाराजों के समय से अखंडित चली आती थी और इसमें अनेक पहुँचे पुरुष भी हुए. ए एक चालीसी के अधिपति थे . वहाँ से मेरे पिता ने बहुत कमाया था . और सामान्य रीति पर भोजन आच्छादन की कुछ कमती नहीं रहती थी .

इसी ग्राम में एक सुंदर कुलीन क्षत्रियवंश के अवतंश सी यहाँ के अधिपति थे . इनका लांछनरहित कुल देश देशांतरों में प्रसिद्ध था और इनकी बात का प्रमाण था . इनके माता पिता का हाल मुझे कुछ भी ज्ञात नहीं पर ये विद्या के सागर-सब गुणों में आगर-काव्य में कुशल-बल में प्रबल-नवल नागर लंबे लंबे बाहु-प्रशस्त ललाट काले काले नेत्र-काली काली भौहैं-गेहुँआ रंग-चतुराई के सदन- इसी ग्राम में बहुत काल से बसते थे . रात दिन पठन-पाठन में इनका